
अफ्रीका दो हिस्सों में बंटने की कगार पर, एआई तस्वीर
Africa Geological Changes: धरती का नक्शा आने वाले लाखों वर्षों में पूरी तरह बदल सकता है। नई रिसर्च चेतावनी देती है कि अफ्रीका महाद्वीप धीरे-धीरे फट रहा है और भविष्य में दो हिस्सों में बंट सकता है। Journal of African Earth Sciences में प्रकाशित एक ताज़ा अध्ययन बताता है कि अफ्रीका के नीचे एक शक्तिशाली भू-प्रक्रिया सक्रिय है जो चुपचाप महाद्वीप को अलग दिशाओं में धकेल रही है।
वैज्ञानिकों के अनुसार, यह प्रक्रिया उत्तर-पूर्व से दक्षिण की ओर ऐसे आगे बढ़ रही है जैसे कोई जिप ऊपर से नीचे तक धीरे-धीरे खुल रही हो। इस बड़े भू-परिवर्तन के संकेत धरती के नीचे लगातार देखे जा रहे हैं ज्वालामुखी गतिविधि में तेजी, हल्के-फुल्के भूकंप और क्रस्ट के फैलने के निशान।
शोधकर्ताओं ने पिछले रिकॉर्डों और ताजा भू-चुंबकीय डेटा का मिलान किया। इसमें साफ दिखाई देता है कि अफ्रीका की धरती अलग-अलग दिशाओं में खिंच रही है और लाखों वर्षों से क्रस्ट में तनाव जमा हो रहा है।
वैज्ञानिक अनुमान बताते हैं कि आने वाले 50 लाख से 1 करोड़ वर्षों में अफ्रीका महाद्वीप दो अलग-अलग भूखंडों में विभाजित हो जाएगा। एक हिस्सा पश्चिमी अफ्रीका होगा जिसमें मिस्र, अल्जीरिया, नाइजीरिया, घाना, नामीबिया जैसे देश शामिल होंगे। दूसरा हिस्सा बनेगा पूर्वी अफ्रीका जिसमें सोमालिया, केन्या, तंजानिया, मोज़ाम्बिक और इथियोपिया का बड़ा इलाका होगा।
अफ्रीका में यह विशाल बदलाव ईस्ट अफ्रीकन रिफ्ट सिस्टम के कारण हो रहा है। यह दुनिया की सबसे प्रमुख रिफ्ट प्रणाली है, जिसकी लंबाई करीब 4000 मील और चौड़ाई लगभग 30-40 मील तक फैली है। यह रिफ्ट जॉर्डन से लेकर मोज़ाम्बिक तक फैली हुई है और धीरे-धीरे जमीन को खींचकर अलग कर रही है। वैज्ञानिकों के अनुसार, भविष्य में यही रिफ्ट लेक मलावी और लेक तुर्काना जैसी बड़ी झीलों को भी दो भागों में बांट देगी।
शोधकर्ताओं का अधिक ध्यान अफ़ार (Afar) क्षेत्र पर रहा, जहां लाल सागर, गल्फ ऑफ एडन और इथियोपियन रिफ्ट मिलकर एक ट्रिपल जंक्शन बनाते हैं। भूगोल में ऐसी जगहें वे होती हैं जहां महाद्वीप सबसे पहले टूटना शुरू करते हैं।
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यहां मिले पुराने चुंबकीय रिकॉर्ड (1968-69 में जुटाए गए) को आधुनिक उपकरणों से दोबारा पढ़ा गया। इनमें पृथ्वी के चुंबकीय उलटफेर की परतों के निशान मिले कुछ उसी तरह जैसे पेड़ों की उम्र जानने वाली रिंग्स या बारकोड की लाइनों की तरह। इन संकेतों से पता चलता है कि कभी अरब प्रायद्वीप और अफ्रीका के बीच समुद्र की सतह फैल रही थी और नई भूमि का निर्माण हो रहा था।






