पीएम मोदी का श्रीलंका दौरा, फोटो ( सो. सोशल मीडिया )
नवभारत इंटरनेशनल डेस्क: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस समय श्रीलंका दौरे पर हैं। श्रीलंकाई राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके ने पूरी मोदी की पूरे गर्मजोशी के साथ उनकी मेहमाननवाज़ी की है। पीएम मोदी को पहले सेरेमोनियल गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया और फिर उन्हें श्रीलंका के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘मित्र विभूषण’ से नवाज़ा गया। यह यात्रा राष्ट्रपति दिसानायके के कार्यकाल में पीएम मोदी की पहली श्रीलंका यात्रा है, हालांकि इससे पहले वह तीन बार वहां जा चुके हैं।
इस प्रकार, पिछले दस वर्षों में यह उनकी चौथी श्रीलंका यात्रा है। ऐसे में यह सवाल स्वाभाविक है कि आखिर प्रधानमंत्री मोदी ने बीते दस वर्षों में श्रीलंका की इतनी बार यात्रा क्यों की है?
प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले दस वर्षों में चार बार श्रीलंका की यात्रा की है, और इसके पीछे कई अहम कारण हैं। सबसे पहली वजह यह है कि श्रीलंका भारत का पुराना पड़ोसी और विश्वसनीय मित्र देश है। भारत की विदेश नीति में ‘नेबरहुड फर्स्ट’ यानी ‘पड़ोसी पहले’ की नीति को प्राथमिकता दी जाती है, इसलिए पड़ोसी देशों से निरंतर संवाद और दौरे स्वाभाविक हैं। दूसरी महत्वपूर्ण वजह श्रीलंका की रणनीतिक भौगोलिक स्थिति है। तीसरी और सबसे अहम वजह है चीन की बढ़ती गतिविधियां और उसकी नजर इस क्षेत्र पर। इन्हीं कारणों से प्रधानमंत्री मोदी ने 2015, 2017, 2019 और 2025 में श्रीलंका की यात्राएं कीं।
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पिछले कुछ वर्षों में चीन ने भारत को चारों ओर से घेरने की कोशिश की है, हालांकि यह प्रयास सफल नहीं हो पाया। एक तरफ उसने नेपाल को भारी कर्ज देकर अपने प्रभाव में लेने की कोशिश की, वहीं दूसरी ओर संकट में डूबे श्रीलंका को मदद का लालच देकर अपने पाले में खींचने का प्रयास किया। इस समय चीन बांग्लादेश को भी अपने करीब लाने में लगा है, जबकि पाकिस्तान तो पहले से ही उसका स्थायी सहयोगी बना हुआ है। भारत अब चीन की इन कूटनीतिक चालों को भली-भांति समझ चुका है।
चीन ने श्रीलंका में ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ के अंतर्गत हम्बनटोटा बंदरगाह और कोलंबो पोर्ट सिटी जैसे बड़े प्रोजेक्ट्स में भारी निवेश किया है, जो क्षेत्र में उसकी पकड़ मजबूत करने की रणनीति का हिस्सा हैं। 2014 में चीनी पनडुब्बियों का कोलंबो बंदरगाह पर आना और 2022 में चीनी जासूसी जहाज ‘युआन वांग 5’ का आगमन भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय बना। साथ ही, 2022 में जब श्रीलंका गहरे आर्थिक संकट में था, तब चीन ने हम्बनटोटा बंदरगाह को 99 वर्षों की लीज पर लेकर वहां अपना प्रभाव और बढ़ा लिया।
ऐसे माहौल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का श्रीलंका दौरा काफी महत्वपूर्ण साबित हुआ है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि श्रीलंका चीन के प्रभाव में आकर भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल न हो और उसकी ज़मीन का इस्तेमाल भारत की सुरक्षा के खिलाफ न किया जाए। पीएम मोदी की रणनीतिक यात्रा ने चीन की योजनाओं पर पानी फेर दिया।
शनिवार को श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमार दिसानायके ने पीएम मोदी को भरोसा दिलाया कि उनका देश अपनी धरती का उपयोग भारत की सुरक्षा के खिलाफ नहीं होने देगा। यह बयान भारत की उन आशंकाओं को कम करने की कोशिश माना जा रहा है, जो चीन के बढ़ते दखल को लेकर थीं।
बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी का श्रीलंका का बार-बार दौरा करना केवल औपचारिक कूटनीति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह चीन की ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ नीति का प्रभाव कम करने की एक रणनीतिक कोशिश भी है। भारत श्रीलंका के साथ आर्थिक, सैन्य और सांस्कृतिक रिश्तों को मजबूत कर क्षेत्र में स्थिरता और सुरक्षा बनाए रखना चाहता है। इस पहल के तहत भारत, श्रीलंका पर चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करना चाहता है और अभी तक यह रणनीति कारगर भी साबित हुई है।