कलकत्ता हाई कोर्ट (सोर्स- सोशल मीडिया)
कोलकाता: दुष्कर्म के मामले में ट्रायल के दौरान हाई कोर्ट द्वारा की गई विवादित टिप्पणियों की फेहरिस्त में बॉम्बे और इलाहाबाद हाई कोर्ट के बाद अब कलकत्ता हाई कोर्ट का नाम भी जुड़ गया है। शनिवार को पॉक्सो के एक आरोपी को जमानत देते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट ने भी कुछ ऐसा कमेंट किया जो विवाद का विषय बन सकता है।
कलकत्ता हाई कोर्ट ने कहा है कि नशे में धुत होकर नाबालिग लड़की के स्तन को छूने की कोशिश करना बच्चों के यौन अपराधों से बचाव (POCSO) अधिनियम के तहत बलात्कार का प्रयास नहीं है। इसे गंभीर यौन उत्पीड़न का प्रयास माना जा सकता है। हम आरोपी को जमानत दे रहे हैं।
कलकत्ता हाईकोर्ट का यह फैसला ऐसे समय में आया है जब कुछ सुप्रीम कोर्ट ने कुछ दिन पहले ही इलाहाबाद हाई कोर्ट की इसी तरह की टिप्पणी को असंवेदनशील बताया था। इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक भी लगा दी थी।
19 मार्च को इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने कहा था- नाबालिग का स्तन पकड़ना, पायजामे का नाड़ा तोड़ना या उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश करना बलात्कार नहीं है। 26 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, ‘यह बहुत गंभीर मामला है। हमें यह कहते हुए बहुत दुख हो रहा है कि फैसला लिखने वाले जज में पूरी तरह से संवेदनशीलता की कमी थी। आइए हम इस पर रोक लगाते हैं।’
निचली अदालत ने आरोपी को पोक्सो एक्ट की धारा 10 और आईपीसी की धारा 448/376(2)(सी)/511 के तहत दोषी करार दिया था। अदालत ने उसे 12 साल की जेल और 50 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। इसके खिलाफ आरोपी ने कलकत्ता हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी।
आरोपी ने कहा कि वह दो साल से अधिक समय से जेल में है। कोर्ट से इस मामले में जल्द फैसला आने की उम्मीद नहीं है। ऐसे में उसे जमानत दी जानी चाहिए। आरोपी ने अपनी याचिका में यह भी कहा था कि पीड़िता, जांच करने वाले डॉक्टर और अन्य गवाहों के साक्ष्य को सही मान लिया जाए तो भी आरोप साबित नहीं होते।
कलकत्ता हाई कोर्ट में जस्टिस अरिजीत बनर्जी और जस्टिस बिस्वरूप चौधरी की खंडपीठ में सुनवाई के दौरान आरोपी के वकील ने दलील दी कि बिना पेनिट्रेशन के आईपीसी की धारा 376 के तहत अपराध नहीं माना जा सकता। ज्यादा से ज्यादा पोक्सो एक्ट की धारा 10 के तहत गंभीर यौन हमले का मामला बन सकता है। इसके लिए 5 से 7 साल की सजा तय है।
वकील ने कहा कि आरोपी ने सजा का बड़ा हिस्सा पूरा कर लिया है, इसलिए उसे जमानत मिलनी चाहिए। इस पर कोर्ट ने माना कि पीड़िता द्वारा दिए गए सबूतों में पेनिट्रेशन के कोई संकेत नहीं हैं। कोर्ट ने कहा कि ब्रेस्ट को पकड़ने की कोशिश करना बलात्कार की कोशिश के बजाय गंभीर यौन उत्पीड़न का मामला हो सकता है।
जनवरी 2021 में बॉम्बे हाई कोर्ट की अतिरिक्त न्यायाधीश पुष्पा गनेडीवाला ने यौन उत्पीड़न के एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि नाबालिग पीड़िता के निजी अंगों को ‘त्वचा से त्वचा’ संपर्क के बिना छूना POCSO के तहत अपराध नहीं माना जा सकता। हालांकि, इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया था।
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सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच के एक फैसले को पलटते हुए कहा कि किसी बच्चे के यौन अंगों को छूना या ‘यौन इरादे’ से शारीरिक संपर्क से जुड़ा कोई भी काम POCSO एक्ट की धारा 7 के तहत ‘यौन हमला’ माना जाएगा। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात इरादा है, न कि त्वचा से त्वचा का संपर्क।