आकाश आनंद, मायावती, चंद्रशेखर, राहुल गांधी (फोटो- नवभारत डिजाइन)
लखनऊः बसपा सुप्रीमो मायावती ने दलित पॉलिटिक्स के उभरते हुए योद्धा एंग्री यंग मैन आकाश आनंद को सियासी शहीद बना दिया है, जबकि उत्तर प्रदेश में 2027 के सियासी समर बसपा समर्थकों और कार्यकर्ताओं में आकाश से काफी उम्मीदें थी। मायावती की ढलती उम्र के साथ बसपा की सियासत भी ढलान पर है। वहीं कांग्रेस दलित वोट बैंक पर नजरें गड़ी हुई है। इसके अलावा अपने तीखे तेवर के लिए जाने जानें वाली भीम आर्मी चीफ व नगीना सांसद चंद्रशेखर आजाद खुद को मायावती का सियासी विरासत का हकदार मानते हैं।
राष्ट्रीय पार्टी का तमगा हासिल कर चुकी बहुजन समाज पार्टी उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे देश में एक मजबूत राजनीतिक फ्रंट बनकर उभरी थी। बसपा के संस्थापक कांशी राम के विजन को साकार करते हुए मायावती यूपी की मुख्यमंत्री तक बनीं। वह मुख्यमंत्री बनने वाली पहली दलित महिला थीं। केंद्र में जिस भी पार्टी की सरकार रहती थी वह मायावती को हमेशा साथ रखने की कोशिश करता था, लेकिन 2012 विधानसभा चुनाव के बाद परिस्थियां ऐसी बदलीं की सियासत की अनकों चुनौतियों को पार करने वाली बसपा डूबती हुई जहाज बन गई।
नए जोश के लिए हुई थी ताजपोशी
उत्तर प्रदेश में लगातार विधानसभा चुनावों व लोकसभा चुनावों खराब प्रदर्शन और घटती ताकत को देखते हुए एक पॉलिटिकल दांव खेला। पार्टी पर बदलते सियासी परिवेश को समझते हुए उन्होंने आकाश आनंद को नेशनल क्वार्डीनेटर बनाकर युवा चेहरा दिया। इसका असर भी लोकसभा चुनाव में देखने को मिला। चुनावी रैलियों में उनके एंग्री यंग मैन वाले भाषण को बसपा समर्थक, खास कर दलित युवा काफी पसंद कर रहे थे। वह कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों में अपनी तेजी से पैठ बना ही रहे थे कि मायावती ने उन्हें झटका दे दिया।
पहले बनाया फिर हटाया, फिर बनाया और अब पार्टी से निकाला
दिल्ली में 17 फरवरी को जब बसपा के देशभर के कोऑर्डिनेटरों की बैठक हुई तभी मायावती ने उस बैठक में यह बात बता दी थी कि आकाश आनंद नेशनल कोऑर्डिनेटर नहीं रहेंगे। इसके बाद 2 मार्च को लखनऊ में बुलाई अपनी बड़ी मीटिंग के बाद उन्होंने इसका ऐलान भी कर दिया, जिसमें दूसरी बार आकाश पार्टी के सभी पदों से मुक्त कर दिए गए। इससे पहले लोकसभा चुनाव के बीच मायावती ने उन्हें नेशनल क्वार्डिनेटर पद से हटा दिया था। इस पार्टी को राजनीतिक खामियाजा भुगतना पड़ा। राज्य में तेजी से यह संदेश दिया गया कि बसपा भाजपा की बी टीम की तरह चुनाव लड़ रही है। विपक्षी दलों द्वारा यह आरोप पहले से ही लगाया जा रहा था, लेकिन आकाश आनंद पर एक्शन के बाद विपक्ष ने फिर जोर-शोर से इस मुद्दे उठाया और क्रोनोलॉजी को देखते हुए लोगों ने विश्वास कर लिया।
कांग्रेस की नजरें दलित वोट बैंक पर टिकीं
कांग्रेस, भाजपा और सपा सरीखे राजनीतिक दल अभी से 2027 के विधानसभा चुनाव की तैयारियों लगे हुए हैं। वहीं दूसरी तरफ अभी उत्तर प्रदेश का तीसरा सबसे मजबूत राजनीतिक फ्रंट आपसी कलह से जूझ रहा है। इसका फायदा सीधे तौर पर कांग्रेस, भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर व कुछ हद तक समाजवादी पार्टी को होगा। क्योंकि कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन को संविधान, दलित व ओबीसी के मुद्दे पर लोकसभा चुनाव में काफी फायदा हुआ है। इसी रणनीति के साथ ये पार्टियां विधानसभा चुनाव में भी उतरेंगी। कांग्रेस ने दलित वोट बैंक को टारगेट करते हुए बाबा साहब भीम राव अंबेडकर व संविधान संबधित एक मुहिम चलाए हुए है।
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क्या करेंगे आकाश आनंद
वहीं आपसी कलह व सियासी उलटफेर देख दलित वोट बैंक जो पहले बसपा से ना उम्मीद हो चुका है। उसे विकल्प के रूप में आजाद समाज पार्टी और कांग्रेस मिल जाएगी। ऐसा लोकसभा में हो भी चुका है। वहीं बहुत कुछ इस बात पर भी निर्भर करेगा कि आकाश आनंद की आगे क्या रणनीति होगी। अब जबकि बसपा ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया तो क्या वह किसी अन्य पार्टी का दामन थामते हैं या सियासत से ही सन्यास ले लेंगे।