इलाहाबाद हाई कोर्ट (फाइल फोटो)
प्रयागराज : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक बेहद महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट कर दिया है कि कि यदि दो वयस्क अलग-अलग धर्मों से संबंध रखते हों और विवाह न किया हो तब भी वे साथ रहने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र हैं। यह फैसला संविधान के तहत मिले मौलिक अधिकारों की व्याख्या करते हुए दिया गया है, जिसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सर्वोपरि माना गया है।
यह मामला एक एक साल चार महीने की बच्ची द्वारा दायर की गई रिट याचिका से जुड़ा है, जिसे उसके माता-पिता की ओर से दाखिल किया गया। याचिका में कहा गया कि बच्ची के माता-पिता 2018 से साथ रह रहे हैं, जब्कि उन्होंने विवाह नहीं किया है। दोनों अलग-अलग धर्मों से ताल्लुक रखते हैं और बच्ची की मां के पूर्व ससुराल वालों से उन्हें जान का खतरा बताया गया।
न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ और न्यायमूर्ति विपिन चंद्र दीक्षित की खंडपीठ ने 8 अप्रैल को इस याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, “हमारे विचार में संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत प्रत्येक वयस्क को अपनी मर्जी से जीवन जीने और साथी चुनने का अधिकार है, चाहे उन्होंने विवाह किया हो या नहीं।”
अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि संभल जिले के पुलिस अधीक्षक यह सुनिश्चित करें कि यदि बच्ची के माता-पिता चंदौसी थाने से संपर्क करें तो उनकी FIR दर्ज की जाए। साथ ही, यह भी जांचा जाए कि उन्हें किसी प्रकार की सुरक्षा देने की आवश्यकता है या नहीं।
महिला के पहले पति की मृत्यु के बाद उसने एक अन्य व्यक्ति के साथ रहना शुरू किया, जिससे उक्त बच्ची का जन्म हुआ। जब यह दंपति स्थानीय पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराने जाते हैं, तो उनके साथ कथित रूप से दुर्व्यवहार किया जाता है और एफआईआर दर्ज नहीं की जाती। इस वजह से बच्ची की ओर से संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई।
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यह मामला सिर्फ एक परिवार की सुरक्षा या अधिकार से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह पूरे समाज को यह समझाने वाला है कि भारतीय संविधान सभी नागरिकों को स्वतंत्रता, समानता और सम्मानपूर्वक जीवन जीने का हक देता है। कोर्ट का यह फैसला न केवल व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि पुलिस प्रशासन को भी यह याद दिलाता है कि कानून का पालन बिना भेदभाव के होना चाहिए।