Deepfake पर सरकार का फैसला। (सौ. Pixabay)
Denmark Deepfake Law: AI तकनीक जितनी तेज़ी से लोगों का जीवन आसान बना रही है, उतनी ही तेज़ी से इससे जुड़े खतरे भी बढ़ रहे हैं। ख़ासकर डीपफ़ेक तकनीक अब सिर्फ़ मनोरंजन तक सीमित नहीं रही, बल्कि फ़ेक न्यूज़, वित्तीय धोखाधड़ी और साइबर अपराध का एक बड़ा ज़रिया बन गई है। इन खतरों से निपटने के लिए डेनमार्क सरकार एक सख़्त क़ानून लाने जा रही है, जो किसी व्यक्ति की डिजिटल पहचान जैसे चेहरे और आवाज़ के दुरुपयोग को रोकने के लिए बनाया जाएगा।
डेनमार्क सरकार इस प्रस्तावित कानून को 2025 की शरद ऋतु में संसद में पेश करने की योजना बना रही है। खास बात यह है कि इस कानून को सभी प्रमुख राजनीतिक दलों का समर्थन मिल रहा है। अगर यह कानून पारित हो जाता है, तो डेनमार्क यूरोप का पहला ऐसा देश बन जाएगा जो डिजिटल पहचान को एआई से बचाने के लिए ऐसा ठोस कदम उठाएगा।
इस कानून का उद्देश्य न केवल फर्जी वीडियो हटाना है, बल्कि AI-जनित सामग्री के कारण होने वाली वित्तीय धोखाधड़ी और फर्जी खबरों के प्रसार जैसे गंभीर अपराधों को भी रोकना है।
Deepfake तकनीक के दुष्प्रभावों ने दुनिया को पहले ही झकझोर कर रख दिया है। हाल ही में, यूक्रेन और अमेरिका के राष्ट्रपतियों के फर्जी वीडियो वायरल हुए, जिससे लोगों में भ्रम की स्थिति पैदा हो गई। एक और गंभीर मामला तब सामने आया जब ब्रिटिश इंजीनियरिंग कंपनी ‘अरुप’ को AI वीडियो कॉल के ज़रिए 2.5 करोड़ डॉलर की धोखाधड़ी का सामना करना पड़ा।
Resemble.ai की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2025 की दूसरी तिमाही में 487 डीपफेक हमले दर्ज किए गए, जो पिछले साल की तुलना में 300% ज़्यादा है। इन हमलों से लगभग 35 करोड़ डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ है।
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यह कानून किसी व्यक्ति की छवि या आवाज़ के अनधिकृत इस्तेमाल के ख़िलाफ़ 50 साल तक कानूनी सुरक्षा प्रदान करेगा। अगर कोई व्यक्ति पीड़ित होता है, तो वह मुआवज़े की मांग कर सकेगा और सामग्री हटवा सकेगा।
इसके अलावा, अगर Meta (Facebook) और X (Twitter) जैसी सोशल मीडिया कंपनियाँ इस कानून का उल्लंघन करती हैं, तो उन पर भारी जुर्माना लगाया जाएगा। यह कदम वैश्विक डिजिटल सुरक्षा में एक नया अध्याय लिख सकता है।