बेहद हंगामेदार होगा संसद का शीतकालीन सत्र
नवभारत डिजिटल डेस्क: संसद का शीतकालीन सत्र 1 दिसंबर से 19 दिसंबर 2025 तक चलेगा, जिसमें सरकार लगभग 10 महत्वपूर्ण विधेयक लाने की योजना बनाए हुए है, जिसमें चंडीगढ़ से संबंधित विधेयक शामिल नहीं होगा, क्योंकि भारी विरोध के चलते फिलहाल सरकार ने उसे पेश करने का इरादा छोड़ दिया है। इसके बावजूद अनुमान है कि संसद का यह सत्र हंगामाखेज होने जा रहा है, विशेषकर इसलिए कि विपक्ष कुछ अति संवेदनशील व विवादित मुद्दे उठा सकता है। एक दिन राष्ट्रीय गीत वंदेमातरम पर चर्चा के लिए भी समर्पित रहेगा, जिसकी रचना के 150 वर्ष पूर्ण हुए हैं और संभवतः सरकार बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के बांग्ला भाषा के उपन्यास ‘आनंद मठ’ (1882) में शामिल इस गीत के सभी पद संसद में प्रस्तुत करेगी, जिसे बंकिमचंद्र ने मूलतः 1875 में रचा था। सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि कोई राजनीतिक दल या सांसद, संसद सत्रों की निरंतर घटती समय अवधि के मुद्दे को क्यों नहीं उठाता? एक मोटा अंदाजा यह है कि 1970 व 1980 के दशकों की तुलना में संसद सत्रों की समय अवधि में तीन गुना कमी आई है, जबकि सांसदों के वेतन व भत्तों में (अक्सर बिना चर्चा के) कई गुना वृद्धि हो चुकी है।
मोटी तनख्वाह लेकर भी सांसद, संसद में इतना कम काम क्यों करने लगे हैं? रिजीजू ने विपक्षी दलों से आग्रह किया है कि वे दोनों सदनों के कामकाज में पूर्णतः हिस्सा लें और ज्वलंत संसदीय व्यवस्था बनाने में मदद व योगदान करें। लेकिन क्या ऐसा हो पाएगा? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आरोप है कि इस गीत के ‘महत्वपूर्ण पदों’ को 1937 में हटा दिया गया था, जिसकी वजह से भारत का विभाजन हुआ। वंदेमातरम का केंद्रीय विचार भारत को देवी माता के रूप में पूजने से संबंधित है। राज्यसभा सचिवालय ने सांसदों को निर्देश दिया है कि वह सदन की गरिमा बनाए रखने के लिए वंदेमातरम और जय हिंद के नारे न लगाएं। इस निर्देश का विपक्ष ने जमकर विरोध किया है। शिवसेना (यूबीटी) के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कहा है कि उनके सांसद संसद में यह नारे लगाएंगे और अगर बीजेपी में हिम्मत है, तो उन्हें निलंबित करके दिखाए, ठाकरे के अनुसार, बीजेपी का ‘हिंदुत्व का मुखौटा बेनकाब हो चुका है’।
‘जय हिंद’ नारे की रचना चेम्पकरमण पिल्लै ने 1907 में की थी, जिसका अर्थ है- हिंदुस्तान को जीत मिले और इसे ख्याति उस समय मिली जब नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने इसे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का आधिकारिक नारा बना दिया और अपनी आईएनए (इंडियन नेशनल आर्मी) के सैनिकों को प्रेरित करने के लिए 1940 के दशक में अपनाया। दूसरी ओर विपक्ष एसआईआर (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन), वायु प्रदूषण आदि मुद्दों को मजबूती के साथ उठाने की योजना बना रहा है।
ये भी पढ़े: संपादकीय: विधायकों-सांसदों को सम्मान देने का आदेश
चुनाव आयोग फिलहाल 9 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में एसआईआर के तहत मतदाता सूचियों की पुनः समीक्षा कर रहा है। तृणमूल कांग्रेस एसआईआर का निरंतर विरोध करती आ रही है। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे ‘वोटबंदी’ घोषित करते हुए कहा है कि वह हर कीमत पर मतदाताओं के अधिकारों की सुरक्षा करेंगी, चाहे एसआईआर का विरोध करते हुए उनकी गर्दन ही कलम क्यों न कर दी जाए। अब तक 6 राज्यों में लगभग दो दर्जन बीएलओ की मौतें आत्महत्या, दिल का दौरा पड़ने आदि से हो चुकी हैं, जिनमें कम समय में अधिक काम के बोझ की वजह बताई गई है। संसद की कार्य अवधि में निरंतर कमी आती जा रही है। आजादी के बाद हमारी संसद हर साल लगभग 120 दिन काम करती थी, लेकिन 2002 व 2021 बीच यह अवधि घटकर 67 दिन प्रति वर्ष औसत की रह गई।
लेख: विजय कपूर द्वारा