क्या कांग्रेस में उभरेगा प्रियंका गांधी का नेतृत्व (सौ.डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: संसद के शीतकालीन सत्र के अंतिम पखवाड़े में लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी जर्मनी गए थे।उसी समय प्रधानमंत्री मोदी भी विदेश दौरे पर थे लेकिन सत्र समाप्ति के समय संसद में उपस्थित थे।सत्र समापन पर आयोजित चाय पार्टी में प्रियंका को आमंत्रित करने में मोदी सरकार सफल रही।वैसे यह लग रहा था कि मनरेगा को समाप्त कर उसकी जगह दूसरी योजना लाने से कांग्रेस इस पार्टी से दूरी बरतेगी लेकिन वह उसमें शामिल हुईं।
इसके एक दिन पूर्व प्रियंका ने लोकसभा में कहा था कि अपने चुनाव क्षेत्र वायनाड के प्रश्नों पर चर्चा करने के लिए वह जून महीने से केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री गडकरी से समय मांग रही हैं जिस पर गडकरी ने कहा कि उनके कार्यालय के दरवाजे किसी भी सांसद के लिए खुले हुए हैं।प्रियंका ने संसद में वंदे मातरम पर चर्चा में भाग लिया और गडकरी से भी मिलीं।अब कांग्रेसजन भी यह देखने लगे हैं कि राहुल गांधी हमेशा जल्दबाजी में और नाराज दिखाई देते हं जबकि प्रियंका गांधी शांत व हंसमुख नजर आती हैं।लोग कहने लगे हैं कि बेहतर होगा यदि राहुल गांधी बीजेपी व आरएसएस के खिलाफ वैचारिक लड़ाई लड़ें तथा प्रियंका गांधी वाड्रा कांग्रेस का नेतृत्व करें।
दोनों की विशेषताओं का कांग्रेस को लाभ मिलेगा।कितने ही कांग्रेसजन प्रियंका के व्यक्तित्व व बोलचाल में उनकी दादी इंदिरा गांधी की छवि देखते हैं।कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे 83 वर्ष के हो चुके हैं इसलिए उनका काम आसान करने के लिए प्रियंका को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जा सकता है।इस तरह का कदम उठाने का अनुकूल प्रभाव बंगाल व तमिलनाडु के 2026 में होनेवाले चुनाव में दिखाई देगा।इसके बाद 2027 में यूपी व गुजरात के विधानसभा चुनावों की बारी आएगी।बीजेपी ने डालर के मुकाबले बुरी तरह गिरता रुपया, महंगाई, बेरोजगारी, सोना-चांदी के बढ़ते दाम जैसे मुद्दों को तरजीह न देकर 2047 तक विकसित भारत बनाने की बात पर जोर दिया है।
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21 वर्षों बाद का यह सपना देखने के लिए कितने नेता अस्तित्व में रहेंगे? बीजेपी आज जितनी मजबूत स्थिति में है उसे देखते हुए कांग्रेस को अपनी खोई हुई सामर्थ्य पुन: हासिल करने की दिशा में सक्रिय होना पड़ेगा।कांग्रेस का एक वर्ग यह भी मानता है कि जो काम राहुल से नहीं हो पाया, वह प्रियंका कर दिखाएंगी।उनमें तालमेल की भावना है।वह पार्टी के पुराने व नए नेताओं के साथ सामंजस्य बिठा सकती हैह्ल।यह फैसला सोनिया गांधी को करना होगा कि यदि राहुल को इतने प्रयासों के बाद भी वांछित सफलता नहीं मिल रही है तो क्यों न प्रियंका को अवसर देकर आजमाया जाए।इससे कांग्रेस की राजनीति में गति व नयापन देखने को मिलेगा।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा