क्या राकांपा फिर एकजुट हो पाएगी!(सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: क्या महाराष्ट्र के दिग्गज नेता कहलानेवाले शरद पवार के राजनीतिक कौशल में पहले जैसा पैनापन नहीं रहा या फिर उनके तरकश के तीर खत्म हो चुके हैं! पहले तो वह मानकर चल रहे थे कि भले ही अजीत पवार गुट के विधायकों की संख्या ज्यादा हो लेकिन जमीनी स्तर पर अपने कार्यकर्ताओं की बदौलत उनकी पार्टी का आधार अधिक मजबूत है। जब 288 सदस्यीय विधानसभा में शरद पवार गुट की केवल 10 सीटें रह गईं तो उनकी हताशा स्वाभाविक थी। राज्य विधानसभा में उद्धव शिवसेना 20 और कांग्रेस 16 सीटों के साथ उनसे आगे है।
अविभाजित राकांपा के महाराष्ट्र विधानसभा में 54 विधायक थे जिनमें से अधिकांश अजीत पवार के साथ चले गए। यह बात अलग है कि महायुति के 237 सीटों के प्रचंड संख्याबल के मुकाबले विपक्ष की कुल सीटें सिर्फ 46 पर सिमट कर रह गई हैं। अब शरद पवार जान गए हैं कि बढ़ती उम्र और बढ़ते राजनीतिक प्रभाव से वह आंखें नहीं चुरा सकते। उन्होंने एक बयान में कहा कि हमारी पार्टी का एक धड़ा चाहता है कि दोनों राकांपा एक हो जाएं। यदि दोनों गुट एक साथ आ जाएं तो इसमें कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए। इसका फैसला सुप्रिया सुले और अजीत पवार को मिलकर करना चाहिए। इस बयान से तो यही माना जाएगा कि शरद पवार का रुख नरम पड़ चुका है। पिछले दिनों पारिवारिक आयोजनों में उनकी अपने भतीजे अजीत पवार से मुलाकात और लंबी चर्चा हुई थी।
तब अजीत पवार ने कहा था कि राजनीति अपनी जगह है और पारिवारिक रिश्ते अपनी जगह। उनकी अपने चाचा से कोई राजनीतिक बातचीत नहीं हुई। पिछले दिनों राकांपा (शरद) के वरिष्ठ नेता जयंत पाटिल के शरद पवार का साथ छोड़ने की अटकलें थी तथा ऐसा अनुमान था कि वह अजीत पवार के नेतृत्ववाली पार्टी में शामिल हो सकते हैं। शरद पवार की मुश्किल यह है कि वह अपनी पूरी राजनीतिक पारी में बीजेपी की आलोचना करते रहे इसलिए वह बीजेपी के नेतृत्ववाले गठबंधन में शामिल नहीं हो सकते। प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता अतुल लोंढे ने दावा किया कि शरद पवार महात्मा ज्योतिबा फुले और छत्रपति शिवाजी महाराज के आदर्शों पर चलते हैं। वह जीवन में कभी बीजेपी के साथ नहीं जाएंगे। शरद पवार की दलील है कि विपक्ष का इंडिया गठबंधन फिलहाल सक्रिय नहीं है इसलिए हमें अपनी पार्टी को संगठित व पुनर्गठित करना चाहिए।
शरद पवार के सारे कौशल की विरासत लेकर अजीत पवार अपनी पार्टी की ताकत बढ़ा रहे हैं। शरद पवार ने यह निर्णय अपनी बेटी सुप्रिया सुले पर छोड़ दिया है कि वह इंडिया गठबंधन में रहे या नहीं। जब उन्होंने कहा कि एकत्र आने का निर्णय अजीत व सुप्रिया लें। मैं उस प्रक्रिया में शामिल नहीं हूं। इसका अर्थ संभवत: यही है कि आगे-पीछे एनसीपी एक हो जाएगी। कितने ही नेता मानते हैं कि अजीत पवार के साथ रहने से सत्ता में जाने का सुख मिलेगा। स्थानीय निकाय चुनाव में बीजेपी के साथ अजीत पवार को भी सफलता मिलेगी। यदि सुप्रिया को मोदी सरकार मंत्री पद का ऑफर दे तो शरद पवार को इसमें कौनसी आपत्ति हो सकती है! उन्होंने कभी यह बयान नहीं दिया कि सुप्रिया बीजेपी के साथ नहीं जाएंगी।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा