
राज्यसभा में एक बार फिर एक राष्ट्र एक चुनाव मुद्दे की गूंज उठी है. सर्वविदित है कि देश में प्रतिवर्ष कोई न कोई चुनाव होता रहता है. इसके पीछे अव्यवस्था है या राजनीतिक स्वार्थ? इस बिगड़े सिस्टम को ठीक कर एक साथ लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव कराने पर गंभीरतापूर्वक विचार क्यों नहीं किया जाता? यदि एक साथ चुनाव होंगे तो जनादेश की स्पष्टता आएगी तथा अनावश्यक रूप से होने वाला खर्च भी बचेगा. अभी 5 राज्यों के चुनाव खत्म हुए.
इसके बाद इसी वर्ष के अंत में गुजरात व हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव होंगे. इसके उपरांत फरवरी 2023 में नगालैंड, त्रिपुरा, मेघालय में चुनाव कराए जाएंगे. कर्नाटक में मई 2023 में चुनाव होगा. मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ व मिजोरम में नवंबर तथा राजस्थान व तेलंगाना में दिसंबर 2023 में चुनाव होगा. आंध्रप्रदेश, ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश व सिक्किम में अप्रैल 2024 में चुनाव कराए जाएंगे. महाराष्ट्र व हरियाणा में अक्टूबर 2024 तथा झारखंड में नवंबर-दिसंबर में चुनाव होंगे. इसके बाद फरवरी 2025 में दिल्ली तथा नवंबर-दिसंबर में बिहार में चुनाव होगा.
1999 में विधि आयोग तथा संसदीय समिति ने सुझाव दिया था कि हमारी निर्वाचन प्रणाली में सुधार लाने के लिए लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाने चाहिए. इसी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में ‘एक देश एक चुनाव’ का विचार रखा था ताकि केंद्र और राज्य सरकारों को सुशासन पर ध्यान देने का पर्याप्त समय मिल सके. नेता व कार्यकर्ता चुनाव प्रचार में व्यस्त रहने की बजाय जनता के प्रति अपना दायित्व निभा सकेंगे.
यदि एक साथ सारे चुनाव कराए जाएं तो बार-बार होने वाले खर्चीले चुनाव प्रचार अभियान, बार-बार मतदाता सूची तैयार करने तथा सुरक्षा बलों की तैनाती की आवश्यकता नहीं पड़ेगी. कालेधन पर अंकुश लगेगा. सरकारें वोटबैंक की चिंता किए बगैर काम कर सकेंगी. बार-बार लुभावने वादे करने की नौबत नहीं आएगी. सुशासन को ध्यान में रखकर नीतियां बनाई व लागू की जा सकेंगी.
पहले 1952 से 1967 तक लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होते थे लेकिन 1969 में कुछ विधानसभाएं भंग किए जाने से यह चुनाव चक्र बिगड़ गया. राज्य की सरकार को कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर भंग कर राष्ट्रपति शासन लगाने की घटनाएं होती हैं लेकिन केंद्र में राष्ट्रपति शासन का कोई प्रावधान नहीं है. वहां लोकसभा पूरे 5 वर्ष की अवधि पूर्ण करती है.
जिन विधानसभाओं के कार्यकाल का 1 वर्ष या कुछ माह का समय बचा है, वहां एक साथ चुनाव कराया जा सकता है. इस तरह कार्यकाल में मामूली बढ़ोतरी या कटौती करते हुए एक साथ चुनाव का आधार बनाया जा सकता है. यदि कुछ राज्यों में एक ही वर्ष के जनवरी माह में तथा कुछ में नवंबर-दिसंबर में चुनाव होना है तो उनका एक साथ चुनाव करा लिया जाए. विभिन्न पार्टियां इस पर विचार करें और देखें कि लोकतंत्र का हित किसमें है. 2018 में विधि आयोग ने स्वीडन, बेल्जियम व द. अफ्रीका की चुनाव प्रणाली के मॉडल पर एक साथ चुनाव कराने की राय दी थी.






