नवभारत निशानेबाज (डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दिल्ली विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी की हार के एक माह बाद मन की शांति की तलाश में विपश्यना करने के लिए पंजाब के आनंदगढ़ स्थित धम्मधजा विपश्यना केंद्र पहुंचे हैं। वहां वह 10 दिनों तक अंतर्मुख रहकर खुद की मन की गहराइयों और अंतर-आत्मा को पहचानेंगे। विपश्यना में अखबार-मैगजीन पढ़ना, टी वी देखना, रेडियो सुनना और मोबाइल का इस्तेमाल वर्जित रहता है। यह एकांत साधना है जिसमें साधक बाहरी दुनिया से दूर हो जाता है।’
हमने कहा, ‘तब तो केजरीवाल के दिल से आवाज उठ रही होगी- तेरी दुनिया से दूर चले होके मजबूर, हमें याद रखना! दुनिया बनानेवाले, क्या तेरे मन में समाई, तूने काहे को दुनिया बनाई! वे गुहार भी कर सकते हैं- ऐ दुनिया के रखवाले, सुन दर्द भरे मेरे नाले!’
पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, जब केजरीवाल आत्मावलोकन करेंगे तो उन्हें दिव्यज्ञान हो सकता है कि आम आदमी पार्टी बनाकर उन्होंने अधूरा काम किया। उनकी हार की वजह यह है कि उन्होंने जेंडर भेद किया। उन्हें आम औरत पार्टी बनाकर महिलाओं को समुचित महत्व और प्रतिनिधित्व देना चाहिए था। केजरीवाल भूल गए कि हर सफल आदमी के पीछे किसी औरत का हाथ होता है।’
हमने कहा, ‘केजरीवाल पर ऐसा आरोप मत लगाइए। उन्होंने दिल्ली की महिलाओं को मुफ्त बस सेवा का उपहार दिया था। जब सीएम पद छोड़ा तो एक महिला आतिशी मर्लेना को उस पद पर आसन कर दिया। आप केजरीवाल की नीतिमत्ता पर संदेह मत कीजिए क्योंकि उनकी पत्नी का नाम ही सुनीता है।’
पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, सिर्फ बस यात्रा मुफ्त करना पर्याप्त नहीं होता। महिलाओं की आवश्यकताएं अनंत हैं। केजरीवाल को चाहिए था कि दिल्ली की महिलाओं की शॉपिंग के बिल का पेमेंट सरकारी खजाने से करते। उनकी किटी पार्टी का खर्च खुद उठाते। सारे ब्यूटी पार्लर को निर्देश देते कि महिलाओं के फैशियल, मैनीक्योर, पैडीक्योर, हेयर कलरिंग, शैम्पू, बाल घुंघराले या सीधा करने, हेयर स्टाइलिंग, भौंहों को कमानीदार बनाने का बिल सीधे उनके पास भेजते।
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महाराष्ट्र की महायुति को ‘लाडकी बहीण’ दिखाई दी लेकिन केजरीवाल ने दिल्ली में अपनी किसी लाडली बहन को नहीं खोजा। वह चाहते तो लाडली चाची, मौसी, भाभी, भतीजी, भानजी के नाम पर योजना चला सकते थे। एक विकल्प लाडली साली योजना का भी था। विपश्यना में यह सारे विचार मन में आएंगे लेकिन अब पछतावा होत क्या जब चिड़िया चुग गईं खेत!’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा