
संक्षिप्त शीतसत्र से कितनी उम्मीद रखें (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: महाराष्ट्र विधानमंडल का केवल 7 दिनों का शीतकालीन सत्र नागपुर में शुरू हो गया है लेकिन इससे विदर्भ की जनता को क्या मिलेगा। सत्र की अवधि कम रहने की वजह से कामकाज सलाहकार समिति ने शनिवार व रविवार को भी अधिवेशन चलाने का कार्यक्रम घोषित किया है। राज्य की स्थिति सरकार के सामने है। अतिवृष्टि से 1 करोड़ 3 लाख हेक्टर में फसलों को क्षति पहुंची है। उपजाऊ मिट्टी बह गई तथा बड़े पैमाने पर पशुधन की भी हानि हुई है।
सरकार का दावा है कि 92 प्रतिशत किसानों को सहायता पहुंचाई गई है लेकिन अनेक स्थानों में किसानों को राहत नहीं मिल पाई है। लाडकी बहीण योजना से राज्य की तिजोरी पर भार बढ़ा है। इतने पर भी मुख्यमंत्री ने कहा कि भले ही राज्य की आर्थिक स्थिति पेचीदा हो किंतु किसानों को लाभ पहुंचाने तथा अन्य घोषणाओं को पूरा करने के लिए निधि का आवंटन हर हाल में किया जाएगा। राज्य की आर्थिक स्थिति नाजुक है लेकिन यह कंगाल नहीं है। अन्य राज्यों की तुलना में महाराष्ट्र आर्थिक रूप से सक्षम है। स्थानीय निकाय के चुनाव की वजह से आचार संहिता के चलते सत्र छोटा रखना पड़ा है। जब ऐसी बात है तो कोई नई घोषणाएं भी नहीं की जा सकेंगी। इतने पर भी इस सत्र में विदर्भ के प्रश्नों पर चर्चा को अधिक समय दिए जाने की अपेक्षा है।
मुख्यमंत्री फडणवीस नागपुरी होने के अलावा गड़चिरोली के पालकमंत्री हैं। इसलिए उम्मीद की जाती है कि वह विदर्भ के कपास व सोयाबीन उत्पादक किसानों के प्रश्नों के साथ क्षेत्र में उद्योग निर्माण व रोजगार के बारे में भी चर्चा को पर्याप्त अवसर देंगे। विदर्भ की लघु व मध्यम सिंचाई योजनाएं निधि की कमी से अधूरी पड़ी हैं। बल्लारपुर प्लाइवुड फैक्टरी व एमआईडीसी के अनेक कारखाने बंद पड़े हैं। विदर्भ के युवाओं को रोजगार के लिए मुंबई, हैदराबाद, बेंगलुरू जाना पड़ता है। विदर्भ में बननेवाली बिजली का लाभ मुंबई व पश्चिम महाराष्ट्र को मिलता है लेकिन विदर्भवासियों को बिजली घरों का प्रदूषण, भारनियमन तथा विद्युत प्रेषण खर्च का बोझ उठना पड़ता है।
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पहले भी देखा गया है कि नागपुर सत्र में बिल्कुल अंतिम दिन विदर्भ के प्रश्न रखे जाते हैं और बगैर पर्याप्त चर्चा के सत्र समाप्त हो जाता है। जब करोड़ों रुपए खर्च कर यहां सत्र लिया जाता है तो विदर्भ के मुद्दों को पूरी प्राथमिकता दी जानी चाहिए। यह सत्र सिर्फ औपचारिकता बनकर नहीं रह जाना चाहिए। यह अजीब सी बात है कि विधान मंडल के दोनों सदनों में विपक्ष के नेता का पद रिक्त है। विधानसभा में पर्याप्त संख्याबल नहीं होने से कोई भी इस पद का दावा नहीं कर सकता। विधान परिषद में संख्याबल के आधार पर कांग्रेस ने इस पद के लिए दावा किया है। पहले अंबादास दानवे परिषद में विपक्ष के नेता थे। उनके निवृत्त होने से यह पद रिक्त हुआ है। इस मुद्दे पर विपक्ष आक्रामक रुख अपना सकता है।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा






