नासा और इसरो के संयुक्त 'निसार मिशन' (सौ.सोशल मीडिया)
नवभारत डिजिटल डेस्क: नासा और इसरो के संयुक्त ‘निसार मिशन’ को लेकर वैज्ञानिक जगत में काफी उत्साह है। यह भारत, अमेरिका और दुनिया के लिए क्या करेगा? क्या आम आदमी को भी इससे कुछ लाभ होगा? इस मिशन पर काम करके इसरो को क्या फायदा होगा? क्या हमारी राष्ट्रीय एजेंसियां, राज्य स्तर की संस्थाएं निसार से मिलने वाली सूचनाओं का लाभ उठाने में सक्षम हैं? क्या इससे मिलने वाले लाभ जनता तक आसानी से पहुंच सकेंगे? यह अब तक का सबसे महंगा उपग्रह है। नासा ने 2,392 किलोग्राम के सैटेलाइट ‘निसार’ पर 11,240 करोड़ रुपये खर्च किए हैं।
विमर्श इस बात पर है कि अंतरिक्ष में लगाई गई यह लंबी तकनीकी छलांग किस तरह युगांतरकारी साबित होने वाली है। जिस बहुप्रतीक्षित निसार यानी नासा इसरो सेंथेटिक अपरचर रडार के अंतरिक्षीय प्रक्षेपण के बारे में इतनी चर्चा है, वह कब से अपना काम शुरू करेगा, इसके जमीनी फायदे क्या हैं? क्या ये फायदे सरकारों, संस्थानों तक सीमित रहेंगे। देश और इसरो को इससे क्या मिलेगा?
11 वर्ष की कड़ी मेहनत से तैयार इस उपग्रह की तकनीक दक्षता भले ही अत्यंत उत्कृष्ट हो और वह हर 12 दिन बाद समूची धरती की अत्यंत उपयोगी सूचनाएं सटीक भेजने में सफल भी हो पर सबसे महत्वपूर्ण और गंभीर सवाल यह है कि क्या उन सूचनाओं, आंकड़ों का उचित विश्लेषण करने, उन्हें व्यावहारिक स्तर पर उतारने, जमीनी लाभ लेने में हमारी एजेंसियां और व्यवस्था भलीभांति सक्षम हैं? अधिकतम 5 साल आयु वाले उपग्रह निसार के बाद क्या होगा? दावा है कि वह दुरुस्त रहे तो आगे भी काम लायक रहेगा पर हमारी व्यवस्था और संबंधित एजेंसियों को इसके अनुरूप चाकचौबंद होना होगा। उन्हें वह क्षमता विकसित करनी होगी, जो सूचनाओं को आमजन के लिए लाभकारी बना सके।
इस लॉन्च के साथ तीन महीने बाद निसार से हर दिन 80 टेराबाइट का विशालकाय डेटा मिलेगा जिससे भू-डेटा स्रोत समृद्ध होगा पर इन सूचनाओं के समुद्र को संभालने, सार्थक उपयोग के लिए क्या हमारी एजेंसियां पूरी तरह तैयार हैं? प्रक्षेपण के 90 दिन बाद निसार 747 किलोमीटर की ऊंचाई पर वृत्ताकार कक्षा में वैज्ञानिक कार्यों के लिए तैयार होगा। वह 240 किमी चौड़ा ट्रैक बनाते हुए हर 12 दिनों में द्वीपों, समुद्री बर्फ और चुनिंदा महासागरों सहित वैश्विक भूमि और बर्फ से ढकी सतहों की तस्वीरें लेगा और आंकड़ों के साथ-साथ बहुत उच्च गुणवत्तायुक्त इन तस्वीरों को भेजेगा।
देश में भूकंप, भूस्खलन, बाढ़ के समय डैमेज प्रॉक्सी मैप बनाकर आपदा राहत पहुंचाने, उसके प्रबंधन का कार्य हो सकेगा। जोखिम-मानचित्र बेहतर होंगे तो बीमाकर्ता सस्ते बीमा बेच सकते हैं और उनका प्रीमियम भी घटा सकेंगे, बशर्ते वे ऐसा करना चाहें। भू-जल व जलाशयों का हर पखवाड़े का लेखा-जोखा मिलेगा, तो इनका बेतरतीब दोहन रोका जा सकेगा। खेतिहरों को हवा में नमी की मात्रा और खेत बुआई की सूचना समय से दी जा सकेगी। उपज-भविष्यवाणी की मदद से सरकार आयात-निर्यात समय पर तय करके किसानों-उपभोक्ताओं दोनों को लाभ पहुंचा सकती है। नगरपालिकाएं गर्मियों के दिनों में किसी खास इलाके में अत्यधिक तापमान का पता लगा, वहां उससे बचाव का इंतजाम कर सकती हैं।
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हरित आवरण व जलभराव के आंकड़े सीधे डाउनलोड करने से नागरिक सेवाएं बेहतर होंगी। डेटा अर्थ-इकोसिस्टम विकसित होगा तो स्मार्ट फार्मिंग, इंफ्रास्ट्रक्चर-हेल्थ जैसी सेवाओं का नया बाजार बनेगा। निस्संदेह निसार का प्रक्षेपण देश के लिए तकनीकी आत्मनिर्भरता और अंतरिक्ष के क्षेत्र में दबदबे की घोषणा है। ठीक है, हमें निसार मिशन से आंकड़ों के जरिए अंतरिक्ष से जमीन और उसके कुछ भीतर देखने की ताकत मिल गई, लेकिन जब तक हम उन आंकड़ों के समझने और इस्तेमाल करने की क्षमता नहीं विकसित करेंगे, यह उपलब्धि अधूरी है।
लेख- संजय श्रीवास्तव के द्वारा