रूसी तेल पर अमेरिकी पाबंदी से फर्क नहीं पड़ेगा
नवभारत डिजिटल डेस्क: रूस के सबसे बड़े दो तेल निर्यातकों (रोजनेफ्ट व लुकऑयल) पर सीधा प्रतिबंध थोपकर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने पुतिन के प्रति अपना दृष्टिकोण बदल दिया है। ट्रंप का दावा था कि ‘मेरे अच्छे दोस्त मोदी ने रूस से तेल आयात बंद करने का वायदा किया है’, जिसका दिल्ली ने तो अभी तक कोई सीधा जवाब नहीं दिया है और न ही खंडन किया है, लेकिन अपने अमेरिकी हितों को मद्देनजर रखते हुए रिलायंस इंडस्ट्रीज व पीएसयू (पब्लिक सेक्टर यूनिट्स) ने संकेत दिए हैं कि वे रूसी तेल आयात करना स्थगित करेंगे। भारत का लगभग 60 प्रतिशत क्रूड तेल रोजनेफ्ट व लुकऑयल से आ रहा था। रूस रोजाना 4।4 बिलियन बैरल क्रूड तेल निर्यात करता है, जिसमें से लगभग दो-तिहाई रोजनेफ्ट व लुकऑयल से निकलता है। प्रश्न है कि क्या तेल निर्यात पर पाबंदी से डरकर पुतिन युद्ध बंद कर देंगे? रूस का तेल न आने से क्या भारत को कोई समस्या होगी? इन दोनों ही सवालों का उत्तर ‘न’ है।
बड़ी मात्रा में रूसी तेल का निर्यात युआन व रूबल में हो रहा है। इसलिए रोजनेफ्ट व लुकऑयल अपने क्रूड का निर्यात रहस्यपूर्ण मालिकों के माध्यम से कर सकती हैं। इसलिए अमेरिका की सीधी पाबंदी में कुछ खास दम दिखाई नहीं दे रहा। भारतीय रिफाइनरियों ने पहले ही संकेत दे दिया है कि वह रूसी क्रूड आयात को स्थगित करेंगी। यूरोपीय संघ भी तीसरी पार्टियों की ओर देख रहा है। लुकऑयल के सैकड़ों गैस स्टेशन यूरोप में हैं और रिफाइनरियों में स्टेक्स भी हैं, जो उसे बेचने पड़ेंगे। लेकिन चीन इन दोनों कंपनियों से क्रूड खरीदता रहेगा। भारत को खास समस्या नहीं रूसी तेल का आयात बंद करने से भारत को भी कोई खास समस्या नहीं होने जा रही है। अमेरिकी व यूरोपीय संघ की पाबंदियों के बावजूद ऊर्जा बाजारों में कोई हड़कंप नहीं है, क्योंकि सप्लाई के अन्य मार्ग खुले हुए हैं और भारत की मैक्रो अर्थव्यवस्था आसानी से एडजस्ट कर सकती है। चार डॉलर प्रति बैरल की वृद्धि कुछ खास नहीं है।
क्योंकि एक बैरल की कीमत अब भी पिछले साल की तुलना में 10 डॉलर कम सस्ता है। यह सही है कि रोजनेफ्ट व लुकऑयल को इसलिए ब्लैकलिस्ट किया गया है ताकि भारत व चीन, जो मिलकर रूस का तीन-चौथाई तेल खरीद रहे थे, उनका तेल आयात करना बंद कर दें और पैसे की तंगी की वजह से मास्को यूक्रेन पर हमले करना बंद कर दे। अमेरिका ने यूरोपीय संघ से भी कहा है कि वह रूसी तेल व गैस खरीदना कम कर दे। यूरोप में गैस के दाम भी कुछ खास नहीं बढ़े हैं। 2026 व 2027 के लिए अग्रिम तेल खरीद दाम भी वर्तमान से कम हैं, जिससे लगता है कि बाजारों को उम्मीद है कि छोटे से अवरोध के बाद रूसी तेल की सप्लाई फिर से आरंभ हो जाएगी। चीन के कुल इलेक्ट्रिक वाहनों के कारण 1 मिलियन बैरल प्रति दिन से अधिक मांग में कमी आई है। भारत रूस से सालाना 1-2 बिलियन डॉलर का तेल खरीद रहा था। भारत के लिए परेशानी उस समय आती, जब रूसी तेल के ग्लोबल बाजार में पूरी तरह से बंद होने पर ग्लोबल तेल दामों में बहुत अधिक वृद्धि हो जाती।
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चूंकि ग्लोबल तेल दामों में आपूर्ति अधिक होने की वजह से आवश्यकता से अधिक इजाफे की संभावना नहीं है। इसलिए भारत के लिए कोई खास समस्या फिलहाल तो नजर नहीं आ रही है। सबसे पहली बात तो यह है कि ट्रंप के बारे में हर कोई जानता है कि वह अपनी सुबह की नीति शाम होने से पहले बदल देते हैं। फिर अमेरिका ने जो पाबंदियां 2022 में लगाई थीं, उन्हें भी वह सही से लागू न कर सका था। वर्तमान पाबंदियां भी इसलिए अस्थायी प्रतीत हो रही हैं कि उनका उद्देश्य पुतिन को वार्ता मेज तक लाने का है। सबसे बड़ी बात यह है कि मांग व आपूर्ति में अन्य – तत्वों का महत्व काफी बढ़ गया है।
लेख-नौशाबा परवीन द्वारा