बिहार में वोटर लिस्ट पुनरीक्षण पर हंगामा (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: वोटर लिस्ट पुनरीक्षण आमतौर पर निर्वाचन प्रक्रिया का एक नियमित अंग है ताकि मतदाता सूची को अद्यतन और त्रुटिहीन बनाया जा सके, लेकिन जब चुनाव आयोग की इस प्रक्रिया को लेकर राज्य बंद और राष्ट्र बंद जैसे आह्वान होने लगे, तो समझ लेना चाहिए इस प्रक्रिया को लेकर राजनीतिक हस्तक्षेप की मजबूत आशंका है।बिहार में चल रहे मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण कार्यक्रम के विरोध में बिहार के समूचे विपक्षी राजनीतिक दल हैं।उन्हें लग रहा है कि चुनाव आयोग की इस कवायद के बहाने राज्य सरकार उनके समर्थक वोटरों को मतदाता सूची से बाहर करने की दबी-छुपी कोशिश कर रही है।
इसलिए विपक्ष के सारे राजनीतिक दलों ने महागठबंधन बनाकर बिहार बंद किया।विपक्षी नेताओं का कहना है कि राज्य सरकार चुनाव आयोग के कंधे पर बंदूक रखकर उनके समर्थकों को मतदाता सूची से बाहर निकालने का षड्यंत्र रच रही है।वोटर लिस्ट रिवीजन के तहत चुनाव आयोग जिन 11 दस्तावेजों की मांग कर रहा है, उनमें से अधिकांश दस्तावेज बिहार के गरीब मतदाताओं के पास नहीं है और इससे भी बड़ी बात यह है कि बिहार के कई करोड़ लोग रोजी-रोटी के लिए फिलहाल प्रदेश से बाहर हैं।ऐसे में आशंका है कि बिहार में गैरमौजूद मतदाताओं को भी मतदान से वंचित किया जा सकता है.
चुनाव आयोग का कहना है यह अकेले बिहार के मतदाताओं की सूची को अंतिम रूप से गहन पुनरीक्षण की प्रक्रियाभर नहीं है, बल्कि आने वाले दिनों में यही पुनरीक्षण प्रक्रिया हर उस राज्य में दोहराई जाएगी, जहां 2029 के पहले विधानसभा चुनाव होने है।चुनाव आयोग के मुताबिक मतदाता सूची पुनरीक्षण का अगला दौर असम, बंगाल, केरल, तमिलनाडु और पुड्डुचेरी में चलने वाला है।बिहार चुनाव के बाद इन राज्यों का नंबर आएगा।इन राज्यों में पुनरीक्षण होने के बाद यूपी, गुजरात, पंजाब, हिमाचल, गोवा और मणिपुर में भी यही प्रक्रिया दोहराई जाएगी, क्योंकि इन सभी राज्यों में भी 2027 के पहले विधानसभा चुनाव होने हैं.
चुनाव आयोग और राज्य सरकार ने जिस तरह देश के इन दो सबसे मान्य दस्तावेजों आधार कार्ड व राशन कार्ड को वोटर लिस्ट में शामिल होने के लिए जरूरी दस्तावेज नहीं माना, उससे फिर इन दस्तावेजों की कीमत क्या बची है? इन्हीं दस्तावेजों के आधार पर पासपोर्ट बन रहा है।इन्हीं दस्तावेजों के आधार पर परीक्षाएं पास की जा रही हैं।इन्हीं दस्तावेजों के आधार पर लोग हर कानूनी काम कर रहे हैं, तो फिर इन्हें मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने का दस्तावेज क्यों नहीं माना जा रहा? अगर इन दस्तावेजों में कोई खामी है तो प्रशासनिक मशीनरी उन खामियों का पता लगाए और उसके लिए जिम्मेदार लोगों को जो सजा देनी हो, दे।
ऐसा करने से लगता है जैसे कि हर वह आदमी चोर, भ्रष्ट और बेईमान है, जिसके पास आधार कार्ड और राशन कार्ड है।किसी भी आम व्यक्ति को ये दस्तावेज कहीं पड़े नहीं मिलते, शासकीय-प्रशासनिक कार्रवाई के बाद मिलते हैं।आज अगर इन्हें गलत या बेईमान मानकर चला जा रहा है, तो इसके लिए सरकार और प्रशासन को जिम्मेदारी लेनी चाहिए, बल्कि अपनी नाकामी के लिए अफसोस भी जताना चाहिए।
अगर चुनाव आयोग आधार कार्ड और राशन कार्ड को मान्य दस्तावेज नहीं मानता, तो फिर भारत सरकार आखिर इन्हीं दस्तावेजों के आधार पर नागरिकों को वो सारी सुविधाएं क्यों देती है, जो सरकार के अधिकार क्षेत्र में है? क्यों इन्हीं आधार कार्डों के आधार पर किसानों को किसान सहायता राशि मिलती है और क्यों इन्हीं के आधार पर आम नागरिक बैंकों में अपने खाते खुलवाते हैं? बिहार सरकार ने जिन दस्तावेजों को वोटर लिस्ट में नाम होने के लिए जरूरी दस्तावेज के तौर पर मांगे हैं, वे कोई ऐसे दस्तावेज नहीं हैं, जो सबके पास हों।मसलन सरकारी कर्मचारी या पेंशनभोगी की आईडी, यह दस्तावेज जिनको सरकारी नौकरी नसीब हुई है, उन्हीं के पास होगा.
लेख- वीना गौतम के द्वारा