प्रतीकात्मक तस्वीर ( सोर्स: सोशल मीडिया )
Navbharat Digital Desk: आखिर 20 वर्ष का अलगाव समाप्त हुआ और उद्धव व उनके चचेरे भाई राज ठाकरे अधिकृत रूप से निकट आ गए। शिवसेना (उद्धव) और मनसे के गठबंधन की उन्होंने घोषणा की। मुंबई सहित राज्य की 29 महापालिकाओं के लिए 15 जनवरी को चुनाव होगा।
इसमें मुंबई मनपा का चुनाव सर्वाधिक प्रतिष्ठा का माना जाता है जिसमें दोनों भाई मिलकर सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन को कड़ी टक्कर देंगे। राज ठाकरे ने दावा किया कि इस बार फिर मुंबई को एक मराठी महापौर मिलेगा और हम मुंबई व महाराष्ट्र तोड़नेवालों को सबक सिखाएंगे।
उद्धव ने कहा कि हम एकजुट रहने के लिए साथ आए हैं और हमारा यह साथ सिर्फ निकाय चुनाव तक सीमित नहीं रहेगा। उद्धव व राज ठाकरे के एकजुट होने से जहां मराठी भाषियों में उत्साह है वहीं हिंदी भाषी वोट बीजेपी की ओर जा सकते हैं। इसकी वजह यह है कि मनसे ने हिंदी भाषा और परप्रांतीय लोगों का हमेशा विरोध किया है।
इस तरह मुंबई मनपा के चुनावी रणसंग्राम में एक ओर शिवसेना (उद्धव) व मनसे तो दूसरी ओर बीजेपी रहेगी। यद्यपि एकनाथ शिंदे की शिवसेना ने मुंबई के अधिकांश संगठनों पर कब्जा कर रखा है लेकिन देखना होगा कि उसका जनाधार कितना है। मुंबई में मराठी भाषियों की संख्या 50 फीसदी से भी कम है।
उद्धव सेना के पास संगठन शक्ति है तो राज ठाकरे के पास प्रभावशाली वक्तृत्वकला। महाराष्ट्र में पहली कक्षा से लेकर 5वीं तक हिंदी अनिवार्य करने की राज्य सरकार ने घोषणा की थी। तभी उद्धव व राज ठाकरे इसके विरोध में एक साथ आए। अब उनका कहना है कि वह एकजुट रहेंगे।
यहां के 6 लोकसभा क्षेत्रों में मराठी भाषियों की संख्या 40 प्रतिशत के आसपास है। काफी संख्या में गुजराती, राजस्थानी समुदाय है। कुछ प्रतिशत यूपी-बिहार से आए लोगों का है। उद्धव और राज को इनका समर्थन शायद ही मिल पाएगा।
इन दोनों भाइयों का साथ आना महाराष्ट्र की राजनीति को नया मोड़ दे सकता है। उद्धव सेना के पास संगठन शक्ति है तो राज ठाकरे के पास प्रभावशाली वक्तृत्वकला। महाराष्ट्र में पहली कक्षा से लेकर 5वीं तक हिंदी अनिवार्य करने की राज्य सरकार ने घोषणा की थी। तभी उद्धव व राज ठाकरे इसके विरोध में एक साथ आए।
अब उनका कहना है कि वह एकजुट रहेंगे। इससे बीजेपी के नेतृत्व वाली महायुति के लिए चिंता बढ़ना स्वाभाविक है। 1989 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में बीजेपी व शिवसेना की युति हुई थी लेकिन 2014 में वह युति टूट गई। 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री पद के लिए बीजेपी नेतृत्व और उद्धव ठाकरे के बीच मतभेद बढ़ गया था।
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फिर कांग्रेस और राकांपा की मदद से महाविकास आघाड़ी बनाकर उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने थे। 2022 में शिंदे गुट अलग हो जाने से उद्धव ठाकरे की सरकार गिर गई थी। एकनाथ शिंदे ने अपनी पार्टी को असली शिवसेना होने का दावा किया।
उन्हें सुप्रीम कोर्ट में पार्टी का चुनाव चिन्ह मिल गया। अब उद्धव ठाकरे के पास अपनी ताकत दिखाने का मौका है। देखना होगा कि राज ठाकरे का सहयोग उनके लिए कितना फलदायी साबित होता है।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा