
(डिजाइन फोटो)
ब्रिटिश युग के लगभग 200 वर्ष पुराने 3 कानूनों की जगह लागू किए गए 3 नए आपराधिक कानून सजा पर इंसाफ को वरीयता देंगे, इस पर शक है। क्योंकि इनमें भी विस्तृत पुलिस शक्तियों व अपराधों को बरकरार रखा गया है, इसलिए इनका दुरुपयोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता व असहमति को कुचलने के लिए हो सकता है।
नये कानूनों में दंडित करने की आउटडेटेड ब्रिटिश मानसिकता को बरकरार रखा गया है, जैसे कि लंबे समय तक जेल में डालना, मृत्युदंड और अनेक अपराधों में न्यूनतम सजा में वृद्धि आदि। बीएनएस के तहत सजाएं बिना किसी तर्क के निर्धारित की गई हैं, सजा के रूप, कैद की अवधि, कैद की प्रकृति या जुर्माने की राशि निर्धारित करने के लिए कोई जाहिर तरीका प्रयोग नहीं किया गया है। इसका भी कोई स्पष्ट जवाब नहीं है कि कुछ अपराधों में कैद की समान सजा क्यों है, जबकि अन्यों में कठोर सजा क्यों है?
यह इसलिए हो सकता है क्योंकि नये ड्राफ्ट को आईपीसी की सजाओं पर निर्भर किया गया है, अतः ब्रिटिश तर्क ही लौटकर आ गया है। सजा के रूप में सामुदायिक सेवा को छोड़ दिया जाए तो बीएनएस में वर्तमान मनमानी व असंगतियों के साथ समान सजाओं को ही बरकरार रखा गया है। बीएनएस में अलग-अलग गंभीरता वाले अपराधों के लिए समान सजाएं हैं और समान अपराधों के लिए अलग- अलग सजाएं हैं। शपथ लेकर झूठा बयान (सेक्शन 216, बीएनएस) देने पर सजा 3 वर्ष की कैद है और महिला के विरुद्ध क्रूरता (सेक्शन 85, बीएनएस) करने पर भी यही सजा है। मानहानि (सेक्शन 356/2, बीएनएस) करो या बच्चे के जन्म को छुपाने के लिए उसके मृत शरीर का चुपके से अंतिम संस्कार (सेक्शन 94, बीएनएस) कर दो, दोनों में सजा 2 साल तक की ही मिलेगी। अगर नाबालिग बच्चे को वेश्यावृत्ति के लिए बेचा (सेक्शन 98, बीएनएस) तो 10 साल की कैद होगी और वेश्यावृत्ति कराने के लिए नाबालिग बच्चे को खरीदा (सेक्शन 99, बीएनएस) तो सजा 14 साल तक की हो सकती है।
कम गंभीर अपराधों की तुलना में अधिक गंभीर अपराधों में सजा कम है। मसलन, धोखे से विवाह करने (सेक्शन 83, बीएनएस) पर अधिकतम सजा 7 साल की है, लेकिन जबरन अवैध श्रम कराने (सेक्शन 146, बीएनएस) पर 1 साल तक ही जेल में रहना होगा और क्रूरता (सेक्शन 85, बीएनएस) व यौन उत्पीड़न (सेक्शन 75, बीएनएस) में सजाएं 3 साल तक की हैं। इसी तरह आजीवन कारावास के संदर्भ में भी असंगति है कि कुछ अपराधों के लिए तो यह सजा है, लेकिन अन्य गंभीर अपराधों के लिए नहीं है। बीएनएस के तहत जुर्माना लगाने में भी तर्क नदारद है कि एसिड अटैक (सेक्शन 124, बीएनएस) में तो दोनों कैद व जुर्माना का प्रावधान है, लेकिन दहेज हत्या (सेक्शन 80, बीएनएस) में जुर्माना का प्रावधान नहीं है। कुछ जुर्मानों का उद्देश्य पुनर्वास है और कुछ का नहीं है। कुछ अपराधों में पूर्व निर्धारित जुर्माना है और कुछ में नहीं है। जिनमें जुर्माना निर्धारित है, उनमें भी अपराध की गंभीरता को ध्यान में नहीं रखा गया है। बीएनएस ने 6 अपराधों में सामुदायिक सेवा का प्रावधान बतौर सजा रखा है, जिसका अर्थ है कि अदालत दोषी से बिना वेतन के ऐसा काम करा सकती है जो समाज के लिए लाभकारी हो।
ब्रिटिश की सजा नीति का उद्देश्य स्थानीय जनता में भय उत्पन्न करना था ताकि उसे नियंत्रित किया जा सके। लेकिन बीएनएस में ‘न्याय’ शब्द पर बल देने और अधिक पारदर्शिता के बावजूद सुधार, पुनर्वास व बहाली के विचारों का फिलहाल के लिए अभाव है। इसके अतिरिक्त मैरिटल रेप को अपराध के दायरे में नहीं रखा गया है। राजद्रोह के अपराध की जगह भारत की प्रभुसत्ता, एकता व अखंडता को खतरा का कानून आ गया है। पुलिस रिमांड प्रावधान पुलिस को गिरफ्तार किए गए व्यक्ति की पुलिस कस्टडी बढ़ाने का अधिकार दिया गया है। सेक्शन 377 को पूरी तरह से गायब कर दिया गया है जो जबरन समलैंगिक मैथुन को अपराध बनाता है। सबसे चिंताजनक यह है कि पुलिस को यह अधिकार दे दिए गए हैं कि जो व्यक्ति पुलिस अधिकारी द्वारा पारित निर्देशों का पालन न करे, उसे हिरासत में लिया जा सकता है। लेख शाहिद ए चौधरी द्वारा






