(डिजाइन फोटो)
जब तक जयललिता जीवित थीं तब तक तमिलनाडु की राजनीति में एआईएडीएमके बहुत मजबूत थी। इतना ही नहीं यह पार्टी केंद्र की राजनीति कोभी प्रभावित करती थी। जयललिता के समर्थन वापस लेने से 1998 में केंद्र की वाजपेयी सरकार गिर गई थी। जयललिता के साथ उनकी सहेली एन। शशिकला साये की तरह साथ रहती थीं। तब यह धारणा बन गई थी कि शशिकला ही जयललिता की राजनीतिक उत्तराधिकारी होंगी लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। जयललिता के निधन के बाद पन्नीर सेलवम मुख्यमंत्री बने। बाद में एआईएडीएमके का प्रभाव घटने लगा और डीएमके नेता एमके स्टालिन ने तमिलनाडु की सत्ता संभाली। शशिकला को जेल जाने की नौबत आ गई थी।
अब वह फिर लंबे समय बाद राजनीति में लौट आई हैं और उन्होंने ऐलान किया है कि 2026 में होनेवाले विधानसभा चुनाव में एआईएडीएमके की सत्ता में वापसी होगी। यह अनुमान गलत भी नहीं है क्योंकि तमिलनाडु की जनता दोनों द्रविड़ पार्टियों को बारी-बारी से सत्ता सौंपती आई है। इसलिए शशिकला को विश्वास है कि जयललिता की असली उत्तराधिकारी के रूप में वह तमिलनाडु की सत्ता में आएंगी। पहले तो उन्हें यह देखना होगा कि क्या उन्हें राजनीति में वापसी पर पार्टी का नेतृत्व मिल पाएगा?
तमिलनाडु में व्यक्ति पूजा की राजनीति चलती है। जयललिता के साथ पोएस पोएस गार्डन बंगले में लंबे समय रहकर शशिकला ने राजनीति के सारे दांवपेच सीख लिए थे। वह निश्चित रूप से स्टालिन की पार्टी डीएमके के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकती हैं। लोकसभा चुनाव में एआईएडीएमके को एक भी सीट नहीं मिल पाई। इतने पर भी शशिकला को अपनी सफलता को लेकर विश्वास है।
जिस राह पर जयललिता चली थीं, वही रास्ता शशिकला को भी अपनाना होगा जयललिता ने स्वयं को एमजी रामचंद्रन का सच्चा उत्तराधिकारी साबित करने के लिए कड़ा संघर्ष किया था। एमजीआर की शव यात्रा के समय जयललिता शववाहक गाड़ी पर चढ़ गई थीं जहां से उन्हें सोमसुंदर नामक व्यक्ति ने लात मार कर नीचे गिरा दिया था। फिर भी जयललिता ने राजनीतिक उत्तराधिकार की होड़ में एमजीआर की पत्नी जानकी को पीछे छोड़ दिया। तमिलनाडु की राजनीति उपहारों की बदौलत चलती है।
डीएमके और एआईएडीएमके के बीच मतदाताओं को गिफ्ट देने की प्रतिस्पर्धा देखी जाती है। पार्टी में मजबूती में कदम जमाने के बाद शशिकला को जयललिता के समय की लोक कल्याणकारी ‘अम्मा’ योजनाओं का और विस्तार करना होगा ताकि जनता को लुभाया जा सके। तमिल मतदाता उलट सुलट कर रोटी सेंकने की शैली में हर चुनाव में दूसरी पार्टी को मौका देते आए हैं। यदि फिर से ऐसा हुआ तो अगले विधानसभा चुनाव में स्टालिन की पार्टी डीएमके की बजाय एआईएडीएमके को सत्ता में आने का अवसर मिल सकता है। शशिकला इसे अपने पक्ष में भुना सकती हैं।लेख चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा