पाक के गले की हड्डी बने उसके अपने भस्मासुर (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: ‘सत्ता में लौटने पर बेनजीर भुट्टो का इरादा अमेरिका से मिलकर मुजाहिदीन के खिलाफ कार्रवाई करने का था।बेनजीर की वापसी अमेरिका के इशारे पर हुई थी, क्योंकि उसने उन्हें मुजाहिदीन-ए-इस्लाम के विरुद्ध योजना तैयार करके दी थी।’ यह मुफ्ती नूर वली महसूद ने अपनी 2017 की पुस्तक में पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की दिसंबर 2007 में हुई हत्या के बारे में लिखा था। उस समय महसूद तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) का बीच के स्तर का नेता था। उसने दावा किया कि इस हत्या के पीछे टीटीपी का हाथ था।
महसूद ने लिखा, ‘(मानव बम) बिलाल ने पहले अपनी पिस्तौल से गोली चलाई, जो बेनजीर भुट्टो की गर्दन पर लगी और फिर उसने अपनी बमों से लैस जैकेट में विस्फोट किया और जुलूस में शामिल लोगों के साथ उसके भी परखच्चे उड़ गए।’ बेनजीर भुट्टो की हत्या के 11 साल बाद महसूद टीटीपी का अमीर (प्रमुख) बना और इस आतंकी गुट ने पाकिस्तान के भीतर बहुत तेजी से पैर फैलाए। अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में लौटने को महसूद ‘पूरे मुस्लिम समुदाय की जीत’ के रूप में देखता है। उसने अपने गुट को मजबूत किया है और पाकिस्तानी फौज के विरुद्ध हमले तेज कर दिए हैं, जिससे इस्लामाबाद और काबुल के बीच तनाव निरंतर बढ़ता जा रहा है।
अक्टूबर 2025 के शुरू में पाकिस्तान ने महसूद को निशाना बनाते हुए काबुल व पक्तिका पर एयर स्ट्राइक की थी। इससे महसूद तो बच गया, लेकिन इस स्ट्राइक के कारण पाकिस्तान व अफगान तालिबान के बीच सीमा पर भयंकर खूनी टकराव हुआ, जिसमें दर्जनों लोग मारे गए। कतर ने अब दोनों के बीच युद्ध विराम कराया है। 25 व 26 अक्टूबर को महसूद के लड़ाकों ने पाकिस्तान में कुर्रम व उत्तरी वजीरिस्तान की सीमाओं से घुसपैठ करने का प्रयास किया, जिसे रोकने के लिए पाकिस्तानी सैनिकों ने गोलीबारी की और लड़ाकों ने भी जवाबी हमला किया। पाकिस्तान के अनुसार इस खूनी संघर्ष में उसके पांच सैनिक मारे गए और महसूद के 25 लड़ाके भी मारे गए।
पाकिस्तान का आरोप है कि अफगानिस्तान आतंकियों को शरण दिए हुए है, जिसका काबुल ने खंडन किया है। दूसरी ओर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि वह पाकिस्तान व अफगानिस्तान के बीच टकराव को ‘बहुत जल्द समाप्त करा देंगे’। पाकिस्तान ने अतीत में जो बोया है, अब वही फसल काट रहा है। पाकिस्तानी सेना व तालिबान के बीच खूनी टकराव से स्पष्ट है कि मिलिटेंसी को परवरिश देने की इस्लामाबाद की रणनीति भयावह रूप से बैकफायर कर गई है। उसने जो भस्मासुर पैदा किए थे, अब वही उसके गले तक पहुंचने की कोशिश में लगे हुए हैं। नतीजतन अफगानिस्तान व पाकिस्तान की सीमा इस समय खुला जख्म बनकर रह गई है। इस्लामाबाद की यह धारणा भी ध्वस्त हो गई है कि अफगानिस्तान तो उसके ‘घर के पीछे का आंगन’ है, जहां वह अपनी मर्जी से कुछ भी कर सकता है। पाकिस्तान ने दशकों तक तालिबान की परवरिश की थी। अब तालिबान ही पाकिस्तान को आक्रांता कहते हुए डूरंड रेखा के पार हमले कर रहा है।
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अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी की भारत यात्रा से स्पष्ट है कि काबुल व दिल्ली के बीच संबंध गहरे व मजबूत होते जा रहे हैं। अफगानिस्तान की पूर्व सरकारों की तरह तालिबान ने भी डूरंड रेखा को मान्यता देने से इनकार कर दिया है और कुछ क्षेत्रों में तो फेंसिंग को भी तोड़ दिया है। डूरंड रेखा अफगानियों के लिए संवेदनशील है। इस्लामाबाद के निरंतर आग्रह के बावजूद तालिबान ने टीटीपी के खिलाफ कार्रवाई करने से मना कर दिया है और वह टीटीपी को सुरक्षित क्षेत्रों से भी बाहर नहीं निकाल रहा है।
लेख- विजय कपूर के द्वारा