
झुड़पी जंगल पर सुको का ऐतिहासिक फैसला (सौ.डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: कितने ही दशकों से झुड़पी जंगल की जमीन का मुद्दा विदर्भ के विकास में बाधक बना हुआ था। इसका समाधान खोजने को कोई तैयार नहीं था। किसी भी योजना में इसकी वजह से अड़ंगा लगा दिया जाता था। विदर्भ के पिछड़ेपन का यह एक बड़ा कारण था। राजनेता व अधिकारी झुड़पी जंगल बताकर विकास से कन्नी काट लेते थे। अब सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक निर्णय देते हुए विदर्भ की झुड़पी जंगल जमीन के वनभूमि होने की बात कही है। इसके फलस्वरूप नागपुर, वर्धा, भंडारा, गोंदिया, चंद्रपुर व गड़चिरोली जैसे 6 जिलों की 86,409 हेक्टेयर झुड़पी जमीन के विकास का मार्ग प्रशस्त हो गया है। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस भूषण गवई व न्यायमूर्ति आगस्टीन जॉर्ज मसीह ने दिया। सीपी एंड बेरार प्रांत से 1956 में अलग होते समय इस जमीन का उल्लेख झुड़पी जंगल के रूप में किया गया था।
1960 में महाराष्ट्र बना जिसमें विदर्भ को शामिल किया गया। पश्चिम महाराष्ट्र में विकास की गंगा बहती चली गई लेकिन विदर्भ के बड़े-छोटे सभी सिंचाई प्रकल्प झुड़पी जंगल का कारण बताकर अटकाए जाते रहे। मराठी शब्द झुड़पी का मतलब है झाड़ीवाली निम्न श्रेणी की खाली पड़ी जमीन। वैसे इस जमीन का उपयोग दीर्घकाल से शासकीय इमारत, स्कूल, अस्पताल व सड़क बनाने में किया जा रहा है। नागपुर की हाईकोर्ट बिल्डिंग भी झुड़पी जंगल क्षेत्र में आती है। इतना इस्तेमाल होने पर भी राजस्व विभाग के रिकार्ड में इसे झुड़पी जंगल का दर्जा रहने से समस्या बनी हुई थी।
विदर्भ का बड़ा इलाका झुड़पी जंगल बताए जाने के कारण यहां सिंचाई परियोजनाओं को केंद्रीय पर्यावरण, वन व पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी नहीं मिल रही थी। अब सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आ जाने से 64 प्रतिशत सिंचाई परियोजनाओं का मार्ग प्रशस्त हो गया है। विदर्भ में लोअर पैनगंगा, जिगांव प्रकल्प, आजनसरा प्रकल्प और हुमन प्रकल्प है जिनके पूरे होने कृषि को बहुत लाभ होगा। ताड़ोबा, पेंच, मेलघाट, नवेगांव-नागझिरा व उमरेड करहांडला जैसे वन अभयारण्य को भी सरकारी मंजूरी मिलने में दिक्कते आ रही थीं।
– झुड़पी जंगल की जमीन 12 दिसंबर 1996 के न्यायालय के आदेशानुसार वनजमीन मानी जाएगी।
– ऐसी 12 दिसंबर 1996 तक की जमीन के बारे में राज्य को वन संरक्षण कानून 1980 की धारा 2 के तहत मंजूरी मांगनी होगी।
– राज्य के प्रत्येक जिले के लिए एकत्रित प्रस्ताव पेश किया जाएं परंतु भविष्य में जमीन के उपयोग में बदलाव नहीं किया जाएगा। जमीन केवल वारिस को हस्तांतरित होगी।
– केंद्र सरकार ऐसे प्रस्ताव पर प्रतिपूरक वनीकरण या वर्तमान मूल्य (एनपीवी) देयक लादे बिना मंजूरी दे।
– केंद्र सरकार व महाराष्ट्र सरकार केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) की पूर्व मंजूरी से 3 माह के भीतर झुड़पी जंगल जमीन के गैर वन कार्य के लिए प्रस्ताव प्रक्रिया का ड्राफ्ट बनवाए।
– वितरित न की गई खंडित जमीन के टुकड़े (प्रत्येक 3 एकड़ से कम क्षेत्र और किसी भी वन क्षेत्र से न लगे हुए) को भारतीय वन कानून 1927 की धारा 29 के तहत संरक्षित वन घोषित करे।
– प्रत्येक जिले में उपविभागीय दंडाधिकारी, पुलिस उपअधीक्षक, सहायक वन संरक्षक तथा तालुका राजस्व निरीक्षक के समावेश वाला विशेष कृति दल स्थापित किया जाए जो 2 वर्ष में इस जमीन का अतिक्रमण हटाए। यह अधिकारी केवल इसी काम के लिए नियुक्त किए जाएं।
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को क्रांतिकारी व ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि झुड़पी जंगल के विरोध में 45 वर्षों से चली आ रही लड़ाई आखिर सफल रही। इससे विदर्भ के अनेक अटके पड़े सिंचाई प्रकल्प अब पूरे किए जा सकेंगे। यह विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन है। इससे विदर्भ के विकास को बढ़ावा मिलेगा और नागपुर के झुग्गी वासियों को मालिकाना हक देने का रास्ता भी साफ हो गया है।






