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संपादकीय: ऑपरेशन सफल, मरीज मर गया, दलबदल विरोधी कानून पर सुको का कड़ा रुख

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने BRS की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि स्पीकर को अयोग्यता संबंधी याचिका पर 3 माह में फैसला कर लेना चाहिए यदि ऐसा नहीं किया जाता तो अदालत अपने अधिकारों का इस्तेमाल करे।

  • By दीपिका पाल
Updated On: Aug 05, 2025 | 12:54 PM

सुको का कड़ा रुख (सौ.डिजाइन फोटो)

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नवभारत डिजिटल डेस्क: एक बार फिर स्पीकर (विधानसभा अध्यक्ष) की भूमिका सवालों के घेरे में है। तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के विधायकों ने गत वर्ष मार्च माह में पार्टी छोड़कर कांग्रेस ज्वाइन की लेकिन विधानसभा अध्यक्ष ने इन विधायकों के बारे में इस वर्ष जनवरी में फैसला किया। विधानसभा अध्यक्ष की इस लेटलतीफी को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने बीआरएस की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि स्पीकर को अयोग्यता संबंधी याचिका पर 3 माह में फैसला कर लेना चाहिए यदि ऐसा नहीं किया जाता तो अदालत अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर सकती है।

स्पीकर ने कहा कि वह इस मुद्दे पर कानूनी राय ले रहे हैं। यह स्थिति कुछ वैसी ही है जैसे राज्य विधानमंडलों द्वारा पारित विधेयकों पर राज्यपाल निर्णय नहीं लेते और उन्हें अटकाए रखते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्षों के लिए समय सीमा तय कर दी। लोकतंत्र में दलबदल की समस्या गंभीर है। दलबदल विरोधी कानून भी इस पर रोक लगा पाने में असमर्थ है क्योंकि उसमें प्रावधान है कि किसी भी पार्टी के एक तिहाई या उससे अधिक विधायक पार्टी छोड़कर अलग गुट बना सकते हैं या किसी अन्य पार्टी में शामिल हो सकते हैं। इस प्रावधान का लाभ उठाने के लिए बड़ी तैयारी और रणनीति के साथ दलबदल को अंजाम दिया जाता है।

गोवा, महाराष्ट्र सहित विभिन्न राज्यों में सधे हुए तरीके से पार्टी तोड़कर दलबदल किया गया या दूसरी पार्टी बना ली गई। दलबदल से निपटने या दलबदलुओं को दंडित करने के कानूनी उपाय सक्षमता से नहीं लागू किए गए। यह स्पीकर का दायित्व है कि वह दलबदल के मामले में कार्रवाई करे लेकिन सत्तापक्ष के राजनीतिक लाभ को देखते हुए स्पीकर ऐसे मामलों की अनदेखी करता है। दलबदल के मामले में सबसे ज्यादा जनता ठगी जाती है। वह जिस पार्टी को वोट देती है उसके विधायक यदि दलबदल कर दूसरी पार्टी में शामिल हो जाते हैं तो यह मतदाताओं से छल है।

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नैतिकता का तकाजा है कि ऐसे व्यक्ति को फिर से चुनाव लड़कर नया जनादेश लेना चाहिए। सीजेआई भूषण गवई ने कहा कि इस मामले के संदर्भ में स्पीकर का कोई निर्देश जारी नहीं करना, संविधान की 10वीं अनुसूची के उद्देश्यों को नष्ट कर देता है। यदि अदालत कोई निर्देश नहीं देगी तो स्पीकर को यह स्थिति दोहराने की छूट मिल जाएगी कि आपरेशन तो सफल रहा लेकिन मरीज मर गया। जब कानून में अस्पष्टता हो तो ऐसी स्थिति में अदालत का हस्तक्षेप औचित्य रखता है। इसलिए कानून निर्माता इस पर ध्यान दें। संसद यह सुनिश्चित करे कि हमारे लोकतंत्र की बुनियाद और उसे कायम रखनेवाले सिद्धांत पूरी तरह सुरक्षित रहें।

लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा

Supreme court takes tough stand on anti defection law

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Published On: Aug 05, 2025 | 12:54 PM

Topics:  

  • BRS Protest
  • Supreme Court
  • Telangana

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