सुप्रीम कोर्ट (Image- Social Media)
Supreme Court: केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए फैसला लेने की समयसीमा तय करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के गंभीर परिणामों की आशंका जताई है। एक लिखित जवाब में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि ऐसी समयसीमा तय करने का मतलब सरकार के किसी भी अंग से उसमें निहित शक्तियों को हड़पना होगा। केंद्र के मुताबिक इससे शक्तियों के विकेंद्रीकरण का संतुलन बिगड़ जाएगा।
केंद्र ने शीर्ष अदालत से कहा है कि इस स्थिति से ‘संवैधानिक अराजकता’ पैदा होगी। ‘सुप्रीम कोर्ट संविधान में संशोधन नहीं कर सकता’ केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में यह लिखित जवाब शीर्ष अदालत के जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच के उस आदेश के खिलाफ दाखिल किया है, जिसमें विधायिका द्वारा पारित किसी भी विधेयक को मंजूरी देने के लिए राष्ट्रपति के लिए तीन महीने और राज्यपालों के लिए एक महीने की समयसीमा तय करने का आदेश दिया गया था।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपने जवाब में कहा है, “अनुच्छेद 142 के तहत निहित अपनी असाधारण शक्तियों के तहत भी, सुप्रीम कोर्ट संविधान में संशोधन नहीं कर सकता है या संविधान निर्माताओं की मंशा को विफल नहीं कर सकता है…” ‘अनुचित न्यायिक’ हस्तक्षेप के खिलाफ तर्क मेहता ने कहा है कि अनुमोदन प्रक्रिया के “संचालन में कुछ सीमित समस्याएं” हो सकती हैं, लेकिन यह “राज्यपाल के उच्च पद को कम करने” को उचित नहीं ठहरा सकता है। उनका तर्क है कि राज्यपाल और राष्ट्रपति के पद “राजनीतिक रूप से पूर्ण” हैं और “लोकतांत्रिक शासन के उच्च आदर्शों” का प्रतिनिधित्व करते हैं।
उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि जो भी कथित खामियां हैं, उन्हें राजनीतिक और संवैधानिक व्यवस्था के तहत ठीक किया जाना चाहिए न कि “अनुचित न्यायिक” हस्तक्षेप के जरिए। राज्यपाल के पास विधेयक को मंजूरी देने की शक्तियां हैं संविधान के अनुच्छेद 200 के अनुसार, राज्यपाल विधानसभा द्वारा पारित विधेयक पर हस्ताक्षर कर सकते हैं राष्ट्रपति ने 14 सवाल पूछकर राय मांगी है।
12 अप्रैल को तमिलनाडु की डीएमके सरकार से जुड़े एक मामले में अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए ऐसी मंजूरी की समय सीमा तय करते हुए एक आदेश जारी किया था। इस पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से ऐसी समय सीमा तय करने वाले उसके आदेश की संवैधानिकता को लेकर 14 सवाल पूछे थे।
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उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों के संबंध में राष्ट्रपति और राज्यपालों की शक्तियों पर अपनी राय देने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई 19 अगस्त से करेगा। भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बीआर गवई ने राष्ट्रपति द्वारा उठाए गए सवालों पर विचार करने के लिए अपनी अध्यक्षता में पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ का गठन किया है। इसमें उनके अलावा जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस चंदुरकर शामिल हैं।