बिहार विधानसभा चुनाव (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: यद्यपि सुप्रीम कोर्ट की 2 जजों की बेंच ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को जारी रखने की अनुमति दे दी है लेकिन कुछ उल्लेखनीय मुद्दे भी रखे हैं जैसे कि बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण में नागरिकता के मुद्दे को क्यों उठाया जा रहा है? यह चुनाव आयोग का अधिकार नहीं है, बल्कि गृह मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में आता है।दूसरा टाइमिंग का सवाल है कि नागरिकता की जांच करनी थी तो पहले ही कदम उठाया जाना चाहिए था।जिन लोगों का नाम मतदाता सूची से हटाया जा सकता है, उनके पास इसके खिलाफ अपील करने का समय व न्यायसंगत अवसर नहीं होगा और चुनाव आ जाएंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने यह कहकर नागरिकों को ढाढस बंधाया कि सुनवाई का मौका दिए बिना किसी को भी मतदाता सूची से बाहर नहीं किया जाएगा।मतदाता सूची पुनरीक्षण में उचित प्रक्रिया अपनाने पर सुप्रीम कोर्ट ने जोर दिया तथा कहा कि एसआईआर सिर्फ बिहार राज्य की मतदाता सूची का मामला नहीं है बल्कि सार्वभौमिक मताधिकार का प्रश्न है।प्रक्रिया सही होगी लेकिन ईसी का समय गलत है।सुप्रीम कोर्ट ने दस्तावेजों की सूची में आधार कार्ड, राशन कार्ड व मतदाता का फोटो पहचान पत्र शामिल करने को कहा।जस्टिस सुधांशु धूलिया व जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि यह मुद्दा महत्वपूर्ण है और लोकतंत्र की जड़ तथा मताधिकार तक जाता है.
सुप्रीम कोर्ट ने वोटर की पहचान सुनिश्चित करनेवाले दस्तावेजों की सूची में आधार, राशन कार्ड तथा वोटर आईडी शामिल करने का सुझाव दिया।बिहार में 10 जुलाई 2025 तक 11,48,98,440 आधार कार्ड जनरेट हुए जो राज्य की 88 फीसदी आबादी को कवर करते हैं।इसी तारीख तक बिहार में 1,79,07,319 राशन कार्ड थे।जहां तक फोटो सहित वोट आईडी कार्ड की बात है, बिहार में 7.89 करोड़ लोगों के पास यह मौजूद हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि एसआईआर के लिए आधार कार्ड और चुनाव आयोग द्वारा जारी इलेक्टोरल फोटो आईडेंटिटी कार्ड को वैध दस्तावेज क्यों नहीं माना जा रहा है? जिस तरह के दस्तावेज मांगे जा रहे हैं, उन्हें कोई तुरंत पेश नहीं कर सकता।मतदाता सूची पुनरीक्षण के मुद्दे पर चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि बिहार के 60 प्रतिशत मतदाताओं ने अपनी पहचान सत्यापित कर दी है तथा किसी को भी अपनी बात रखने का अवसर दिए बिना मतदाता सूची से बाहर नहीं किया जाएगा।
बिहार के लाखों लोग देश के अन्य राज्यों में नौकरी-रोजगार के लिए जाते हैं।उनके लिए कामकाज छोड़कर वापस लौटना और अपना जन्म प्रमाणपत्र या स्कूल सर्टिफिकेट खोजना आसान नहीं है।प्रवासी श्रमिकों के सामने प्रश्न है कि वोट से जुड़े दस्तावेज खोजें या अपनी नौकरी देखें।उनके पास आधार या वोटर कार्ड है लेकिन अन्य दस्तावेजों को लेकर वह कभी गंभीर नहीं रहे।बिहार के ग्रामीण क्षेत्र में अब भी लोग जन्म-मृत्यु प्रमाणपत्र हासिल करने के लिए प्रयास नहीं करते और इसके महत्व से भी अनजान बने हुए हैं।वैसे मतदाताओं को पहले से भरे हुए जो फार्म वितरित किए गए हैं उनमें आधार नंबर और वोटर कार्ड का विवरण दिया हुआ है।
मतदान के लिए वोटर की पहचान सुनिश्चित होनी चाहिए लेकिन चुनाव आयोग ने इसे जटिल बना दिया है।सुप्रीम कोर्ट में मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी।मतदाता सूची पुनरीक्षण की प्रक्रिया पर अंतरिम रोक लगाने की मांग 10 विपक्षी दलों के नेताओं सहित किसी भी याचिकाकर्ता ने नहीं की है।चुनाव आयोग की दलील है कि मतदाता सूची में नामों को शामिल करने या हटाने के लिए पुनरीक्षण आवश्यक होता है।यह काम वह नहीं तो कौन करेगा?
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा