चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर उठे सवाल (सौ.डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी का यह सवाल अहमियत रखता है कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में सिर्फ 5 महीने में 70 लाख नए मतदाता कैसे जोड़ दिए गए? लोकसभा चुनाव की मतदाता सूची में इतनी जल्दी कैसे इतना इजाफा हो गया? मतदाताओं की बढ़ी हुई संख्या हिमाचल प्रदेश की आबादी जितनी है. 5 वर्ष में जितने वोटर बढ़ते हैं उतने सिर्फ 5 महीने में जोड़े गए। नए वोटर उन्हीं विधानसभाओं में हैं जहां बीजेपी जीती है, शिर्डी में 7,000 नए मतदाता जोड़ दिए गए।
राहुल गांधी ने कहा कि इन 7,000 मतदाताओं का पता एक ही इमारत में बताया गया है, क्या इतने लोग एक बिल्डिंग में रहते हैं? कांग्रेस ने चुनाव आयोग से वोटर लिस्ट में जोड़े गए नए मतदाताओं से संबंधित विवरण मांगा था जो आयोग ने नहीं दिया। राहुल ने कहा कि उन्हें चुनाव आयोग से न्याय नहीं मिलेगा, कांग्रेस, राकां, यूबीटी को मिले वोटों के आंकड़े मांगने पर भी चुनाव आयोग ने नहीं दिए।
राहुल का आरोप है कि मुख्य चुनाव आयुक्त को चुननेवाली बॉडी से देश के प्रधान न्यायाधीश को हटा दिया गया. अब नेता प्रतिपक्ष के रूप में वह चुनाव आयुक्तों का चयन करनेवाली बैठक में जाएंगे लेकिन उस समिति में सरकार की बहुलता है और केवल मोदी और शाह की बातें ही सुनी जाएंगी. मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार इस माह रिटायर होने जा रहे हैं. उनकी जगह नए सीईसी का चयन होगा। पहले चुनाव आयुक्त औपचारिकता के तौर पर चुनाव कराया करते थे और संविधान में प्रदत्त अपनी शक्तियों का उपयोग नहीं करते थे, 1990 में टीएन शेषन ने सीईसी बनने के बाद इन अधिकारों का पूरा-पूरा इस्तेमाल करते हुए चुनाव में धांधली खत्म करने और पारदर्शिता लाने का प्रयास किया। शासनकर्ता भी शेषन की सख्ती से डरते थे, उनके अधिकारों पर अंकुश लगाने के लिए सरकार ने 2004 में चुनाव आयोग को 3 सदस्यीय कर दिया मनोहरसिंह गिल और लिंगदोह को चुनाव आयुक्त बना दिया गया।
राजनीतिक रुझान वाला न हो
2004 से 2018 तक चुनाव आयोग औपचारिक या रूटीन तरीके से काम करता रहा. चुनाव आयुक्तों का राजनीतिक रुझान भी सामने आया, एमएस गिल रिटायर होने के बाद सांसद और मंत्री बन गए। स्व. नवीन चावला गांधी परिवार के निकटवर्ती माने जाते थे. 2018 में सुनील अरोरा के चुनाव आयुक्त बनने के बाद राजनीतिक निष्पक्षता सवालों के घेरे में आ गई। टकराव टालने के लिए अशोक लवासा की एशियन डेवलपमेंट बैंक में नियुक्ति की गई और अरूण गोयल को राजदूत बना दिया गया,ऐसे नौकरशाहों को चुनाव आयुक्त बनाया गया जो सरकार के खिलाफ न जाएं।
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वर्तमान सीईसी ने असम के लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए ऐसा निर्वाचन क्षेत्र परिसीमन किया जो बीजेपी के अनुकूल था. आरोप है कि उनके कार्यकाल में जानकारियां देना रोक दिया गया. डाले गए वोट और गिने गए वोट का अंतर नहीं बताया गया. साधनसंपन्न बीजेपी को प्रचार का ज्यादा अवसर मिले इसलिए बंगाल व ओडिशा का चुनाव कई चरणों में कराया गया. विपक्ष की शिकायतों पर गौर करने की बजाय विपक्ष को धमकाया जाने लगा। देशवासी चाहते हैं कि चुनाव आयोग पूरी तरह निष्पक्ष रहे और सत्तापक्ष की ओर उसका झुकाव न रहे. यदि सरकारी वर्चस्व वाली समिति चुनाव आयुक्त का चयन करेगी तो वह सरकार के दबाव-प्रभाव में रहेगा. अदालत के मूल आदेश के अनुसार निष्पक्ष तरीके से चुनाव आयुक्त की निुयक्ति होनी चाहिए तभी इस संवैधानिक पद की निष्पक्षता व गरिमा सामने आ पाएगी।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा