आज का निशानेबाज (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत लाइफस्टाइल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, दिन के उजाले की बजाय सरकार रात का अंधेरा पसंद करती है इसीलिए वक्फ बिल लोकसभा में रात 2 बजे और राज्यसभा में आधी रात के बाद पारित किया गया. इसी तरह मणिपुर में राष्ट्रपति शासन को मंजूरी का प्रस्ताव भी रात 1.59 बजे पेश किया गया. इसकी वजह क्या है?’ हमने कहा, ‘दिन में कोलाहल होता है और मध्य रात्रि में शांति रहती है. आपने वी शांताराम की फिल्म का गीत सुना होगा- आधा है चंद्रमा, रात आधी, रह ना जाए तेरी मेरी बात आधी, मुलाकात आधी! रात का समय सरकार को उपयुक्त लगता है. तब न हंगामा होता है, न कोई ड्रामा होता है. कितने ही सदस्यों की पलकों पर निद्रा सवार रहती है इसलिए सोचते हैं जल्दी काम निपटे तो जाकर बिस्तर पर सो जाएं।’
पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, भारत की पुरानी परंपराओं को याद कीजिए. आधी रात के समय देश को आजादी मिली थी जिसे फ्रीडम ऐट मिडनाइट कहते हैं. जब अधिकांश जनता सो रही थी तब प्रथम प्रधानमंत्री पं. नेहरू ने अपना प्रसिद्ध भाषण ‘ट्रायस्ट विद डेस्टिनी’ दिया था. पीएम नरेंद्र मोदी ने भी नोटबंदी की घोषणा के लिए रात का समय चुना था. इंदिरा गांधी ने इमर्जेन्सी लगाने का फैसला भी आधी रात में लिया था और विपक्षी नेताओं को अरेस्ट करवाया था. जयललिता ने आधी रात को पुलिस भेजकर घर में सोए हुए एम करुणानिधि को नींद से जगाकर गिरफ्तार करवाया था।’
हमने कहा, ‘रात को लेकर कितने ही फिल्मी गीत हैं जैसे कि- मुझको इस रात की तन्हाई में आवाज ना दो! रात भर का मेहमां है अंधेरा, किसके रोके रुका है सबेरा! रात ने क्या-क्या ख्वाब दिखाए, रंग भरे सौ जाल बिछाए, आंखें खुली तो सपने टूटे रह गए गम के काले साए! ये रात ये चांदनी फिर कहां, सुन जा दिन की दास्तां! सुहानी रात ढल चुकी, ना जाने तुम कब आओगे! रात का समां झूमे चंद्रमा, मन मेरा नाचे रे जैसे बिजुरिया.’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, फिल्मों की शूटिंग आम तौर पर रात में ही होती है. राजनीति के दांव पेंच भी रात में रचे जाते हैं।
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मतदान के पहले झोपड़पट्टी के लोग रात भर जागते रहते हैं क्योंकि नेताओं की ओर से बर्तन, साड़ियां, शराब और नकद रकम की सौगात रात में ही बांटी जाती है. उसे कत्ल की रात कहते हैं. विद्यार्थी रात भर जागकर परीक्षा की तैयारी करते हैं. रात में ट्रेन, बस, हवाई जहाज चलते हैं. पुलिस गश्त लगाती है. वाचमैन चौकीदारी करते हैं और पत्रकार नाइट कमांडर के रूप में अपनी ड्यूटी करते हैं. मुशायरे व कवि सम्मेलन भी रात भर चला करते हैं. टीवी चैनल पूरी रात चालू रहते हैं. अब कोई पुरानी गायिका नहीं गाती- चंदनिया है रात सजन, रहियो कि जइयो!’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा