(डिजाइन फोटो)
पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, किसी निर्माण कार्य के लिए जब जमीन खोदी जाती है तो उसे भूमिपूजन समारोह कहा जाता है स्कूल, अस्पताल सभी के लिए यह प्रक्रिया अपनाई जाती है।’’
हमने कहा, ‘‘खोदना अच्छी बात है। पहले लोग कुआं, तालाब, बावली न जाने क्या-क्या खुदवाया करते थे। ऐसा करने से उन्हें पुण्य मिलता था। जो लोग जमीन खोदना पसंद नहीं करते थे, वे पहाड़ों की ओर निकल जाते थे। उनके बारे में कहा जाता था- खोदा पहाड़ निकली चुहिया! खोदने की टेक्नोलॉजी जब ज्यादा विकसित नहीं हुई थी तो लोग पूरी तरह कुदाल-फावड़ा पर निर्भर थे।’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, कुदाल चीज ही ऐसी है कि जहां चल गई, वहां चल गई! कुछ लोग जहां सुई काम होता है, वहां भी कुदाल चला देते हैं! किसी भूमिपूजन समारोह में मंत्री हेलीकॅप्टर से आते हैं, भाषण देते हैं और शुभ मुहूर्त में एक कुदाल मारकर अबाउट टर्न हो जाते हैं। बाद में मजदूर महीनों तक खोदते रहें तो उनकी किस्मत।’’
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हमने कहा, ‘‘राजनीति में लगे लोग कभी-कभी अपनी पार्टी के अनुशासन की जड़ों पर कुदाल चला देते हैं। निकाले जाने पर वह नई पार्टी का भूमिपूजन करने में जुट जाते हैं। जिन शहरों में विकास का काम नगरपालिका, सुधार प्रन्यास, नजूल और पीडब्ल्यूडी को दिया जाता है, वह आपस में कोई तालमेल नहीं रखते। वहां टेलीफोन और बिजली विभाग की भी अपनी कुदालियां हैं। वहां हर विभाग सड़क की छाती पर बारी-बारी से कुदाल चलाता है। एक विभाग गड्ढा भरता है तो दूसरा आकर उसे फिर खोद देता है। जनता की परेशानी से किसी को भी मतलब नहीं है।’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, दुनिया में सबसे नुकीली, पैनी और भारी-भरकम कुदाल अमेरिका के पास है। वह व्यापार प्रतिबंध, पेटेंट अधिकार जैसी कुदाल जब चाहता है तान देता है। कुछ सरकारों को भी खोदकर फेंक देता है। आरोप है कि बांग्लादेश में अमेरिका ने ही हसीना की सरकार पर कुदाली चलाई थी। यूपी की योगी सरकार का छोटी-मोटी कुदाली से काम नहीं चलता। वह माफिया और अपराधियों के मकान गिराने के लिए सीधे बुलडोजर चलवा देती है। जहां तक खोदने की बात है केंद्रीय जांच एजेंसियां खोद-खाद कर सवाल पूछती हैं। कुछ लोग मानकर चलते हैं कि ऊपरवाले की मर्जी के बगैर पत्ता भी नहीं हिलता। दुनिया में जहां भी खुदाई होती है, खुदा की मर्जी से होती है।’’
लेख चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा