खुशी में मोदी ने घुमाया गमछा (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, राजनीति में नेता के लिए चमचा महत्व रखता है या गमछा? हमें लगता है कि जैसे गुड़ से मक्खी चिपक जाती है वैसे ही चमचे अपने नेता से चिपके रहते हैं।वह बिचौलिए या दलाल बनकर जरूरतमंदों को हलाल करते हैं।नेता तक पहुंचने के लिए चमचा एक माध्यम रहता है।’ हमने कहा, ‘चमचा पक्का बेशर्म होता है वह नेता के बंगले पर तड़के सबेरे पहुंच जाता है।नेता की डांट-फटकार को आशीर्वाद समझकर ग्रहण करता है।उसे खुशामद करने की कला आती है।
वह नेता से कहता है कि हम तो आपके पुराने चमचे हैं।जैसा चाहे घोट लीजिए।चमचा मौका देखकर टी स्पून, टेबल स्पून या सर्विंग स्पून बन जाता है।बड़े नेता के चमचे कुछ ज्यादा ही खनकते हैं। पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, चमचागिरी पर नियंत्रण लगाने के लिए मुख्यमंत्री ने मंत्रियों को अपनी पसंद के स्वीय सहायक या ओएसडी रखने की अनुमति नहीं दी।अब मुख्यमंत्री खुद तय करते हैं कि किस मंत्री को कौन सा ओएसडी या ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी देना है।’ हमने कहा, ‘चमचे की खासियत यही रहती है कि वह नेता या मंत्री की हां में हां मिलाता है और अपने बॉस का इशारा भलीभांति समझता है।
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उसके हाथ में रहता है कि किसे मंत्री से मिलने दे या किसे घंटों वेटिंग में बिठाए रखना।’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, चमचे की बहुत चर्चा हो गई, अब गमछे की बात की जाए।प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए की शानदार जीत के बाद अपने गले में पड़ा गमछा हवा में घुमाया।उनका यह अनोखा अंदाज लोगों को पसंद आया।वह चाहते तो उंगलियों से अंग्रेजी का ‘वी’ अक्षर बनाकर विक्ट्री की खुशी मना सकते थे लेकिन उन्होंने गमछा घुमाकर खुद को बिहार, यूपी व एमपी के उन ग्रामीण लोगों से जोड़ दिया जो कंधे पर गमछा रखकर बाहर निकलते हैं।इसे आप मोदी का परफॉर्मिंग आर्ट कह सकते हैं।’
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा