(डिजाइन फोटो)
लोकसभा चुनावों के बाद से ही यह चर्चा आम रही है कि जल्द ही चार राज्यों में विधानसभा चुनाव होंगे। यही वजह है कि 16 अगस्त 2024 को जब केन्द्रीय चुनाव आयोग से यह खबर आई कि दिन में तीन बजे आयोग आगामी विधानसभा चुनावों की घोषणा करेगा तो यह माना जा रहा था कि महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और जम्मू-कश्मीर के लिए चुनावों की घोषणा होने वाली है, मगर शाम तीन बजे चार राज्यों की जगह सिर्फ दो राज्यों जम्मू-कश्मीर और हरियाणा के विधानसभा चुनावों की ही घोषणा थी। मुख्य चुनाव आयुक्त ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा जम्मू-कश्मीर में 3 फेज में, 18 सितंबर, 25 सितंबर और 1 अक्टूबर 2024 को वोट डाले जाएंगे, जबकि हरियाणा में एक फेज में 1 अक्टूबर 2024 को मतदान होगा।
दोनों राज्यों के नतीजे 4 अक्टूबर को आएंगे। घोषणा के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार से पत्रकारों के इस सवाल की बौछार होनी ही थी कि चार की जगह सिर्फ दो राज्यों में चुनाव की घोषणा क्यों? यह सवाल इसलिए भी सबकी जुबान में बिना सोचे चला आया; क्योंकि एक ही दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लालकिले की प्राचीर से एक बार फिर ‘एक देश एक चुनाव’ की जरूरत पर बल दिया था। मुख्य चुनाव आयुक्त इस संभावित सवाल का होमवर्क करके आये थे। उन्होंने कहा- महाराष्ट्र में विधानसभा का कार्यकाल 26 नवंबर 2024 तक है, जबकि हरियाणा में यह 3 नवंबर 2024 तक ही है।
साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि महाराष्ट्र में मानसून अभी भी सक्रिय है और राज्य के कई हिस्से बाढ़ से भी प्रभावित हैं, इसलिए चुनाव कराने का रिस्क अभी नहीं लिया जा सकता है। इन दो कारणों के अलावा मुख्य चुनाव आयुक्त ने यह भी कहा कि राज्य में गणेश चतुर्थी और दीपावली जैसे बड़े त्योहार आ रहे हैं, इसलिए भी एक साथ चुनाव से बचा गया है। हालांकि यह कारण प्रभावशाली नहीं था, क्योंकि गणपति, दीपावली, नवरात्री ये त्योहार तो दूसरे राज्यों में भी आएंगे ही। यह दलील किसी के भी गले के नीचे नहीं उत्तरी। विपक्षी पार्टियों ने साफ कहा कि महाराष्ट्र में मौजूदा सत्तारूढ़ गठबंधन अपनी जीत को लेकर आश्वस्त नहीं है, इसलिए चुनाव आयोग ने उसकी सहूलियत के लिए उसे कुछ दिनों का और अतिरिक्त समय दिया है।
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दरअसल इसी साल अप्रैल-मई में सम्पन्न लोकसभा चुनाव में एनडीए की करारी हार हुई थी। प्रदेश की कुल 48 लोकसभा सीटों में से महाविकास अघाड़ी के विभिन्न दलों को 29 सीटों पर कामयाबी मिली थी, जबकि एनडीए को 17 सीटों पर ही सफलता मिल सकी थी। हालांकि वोट प्रतिशत के हिसाब से महाविकास अघाडी को जहां 43.7 प्रतिशत मत मिले थे, वहीं महायुति का वोट प्रतिशत 43.5 था। लेकिन विधानसभा सीटों के नजरिये से देखें तो महाविकास अधाड़ी को प्रदेश की 288 विधानसभा सीटों में से 154 सीटों पर जीत या बढ़त हासिल हुई थी।
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हो सकता है सचमुच आयोग की ऐसी कोई मंशा न हो; लेकिन जिस तरह पिछली तीन बार 2009, 2014 और 2019 से हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव एक साथ हो रहे थे, उसे देखते हुए दोनों विधानसभाओं के कार्यकाल खत्म होने में महज 23 दिनों का फासला अलग-अलग चुनावों का कोई ठोस और वाजिब वजह नहीं लगते। हां, झारखंड का माना जा सकता है क्योंकि वहां विधानसभा का कार्यकाल जनवरी 2025 में खत्म होने जा रहा है। साथ ही वहां के मौजूदा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन काफी दिनों तक जेल काटकर आये हैं, इसलिए उन्हें फिर से सत्ता संचालन की सहज गति पकड़ने के लिए कुछ समय चाहिए, जो कि उनके पास वैधानिक रूप से है, तो भला वो पहले चुनावों के लिए क्यों राजी होंगे?
लेकिन जहां तक महाराष्ट्र की बात है तो आयोग जबरदस्ती तकनीकी कारण ढूंढ रहा है। शायद यही वजह है कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार) और कांग्रेस ने प्रतिक्रिया व्यक्त की है कि त्योहार और मौसम तो पहले भी महाराष्ट्र में ऐसे ही आया करते थे, लेकिन पहले चुनाव आगे नहीं किये जाते थे? शिवसेना (यूबीटी) के नेता आदित्य ठाकरे ने भी चुनाव आयोग के इस तर्क पर निशाना साधा है। आदित्य ठाकरे ने इस पर कहा, ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव की बात करने वालों पर आयोग ने नमक छिड़क दिया है।’
लेख लोकमित्र गौतम द्वारा