(डिजाइन फोटो)
नवभारत डेस्क: आजादी की 78वीं वर्षगांठ के अगले दिन 16 अगस्त को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने भारतीयों को जश्न मनाने का ऐतिहासिक मौका तब दिया, जब श्रीहरि कोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से इसरो ने बहुप्रतीक्षित लांच कर दिया। इस ऐतिहासिक सफलता के कुछ ही मिनटों बाद इसरो के चीफ एस. सोमनाथ ने कहा, ‘रॉकेट ने अंतरिक्ष यान को योजना के मुताबिक सटीक कक्षा में स्थापित कर दिया है। उसकी स्थिति में कोई डाइवर्जन नहीं है।’
एसएसएलवी का मतलब स्मॉल सैटेलाइट लांच व्हीकल और डीउ का मतलब है- तीसरी डिमांस्ट्रेशन फ्लाइट। इस रॉकेट का इस्तेमाल करके इसरो मिनी, माइक्रो और नैनो सैटेलाइट की लांचिंग मौजूदा लागत से बहुत कम में कर सकेगा। आज की तारीख में अंतरिक्ष में सैटेलाइट भेजना सिर्फ राष्ट्रीय गौरव तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह अच्छा खासा बाजार भी है। जो 2022 तक 49,000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा का था और माना जा रहा है कि अगले साल के अंत तक यह सैटेलाइट लांचिंग का बाजार बढ़कर डेढ़ लाख करोड़ रुपये से भी ज्यादा का हो जाएगा। चूंकि इस बड़े बाजार पर कब्जा करने के लिए पहले से ही विश्व बाजार में एलन मस्क की स्पेस एक्स जैसी हैवी वेट कंपनी मौजूद हैं जो समूचे बाजार पर कुंडली मारना चाहती हैं, इसके लिए जरूरी था कि इसरो भी इस बाजार में अपनी जरूरी भागीदारी पाने के लिए कम लागत का कोई रॉकेट लांचर विकसित करे।
इस रॅकेट की सफल लाचिंग के साथ ईओएस 8 सैटेलाइट के अलावा एक छोटा सैटेलाइट एसआर-०, डेमोसैट भी छोड़ा गया। दोनों ही सैटेलाइट धरती से 475 किलोमीटर की ऊंचाई पर एक गोलाकार ऑर्बिट में स्थापित कर दिए गए हैं। इसरो प्रमुख डॉ. एस सोमनाथ ने कहा कि जल्द ही हम इस रॉकेट की टेक्निकल जानकारी लांचिंग इंडस्ट्री के साथ साझा करेंगे, जिसका मतलब साफ है कि इसरो अपने इस लांचर व्हीकल के जरिये एलन मस्क की कंपनी स्पेस एक्स के साथ प्रतिस्पर्धा करने और सफल रहने को लेकर आश्वस्त है। उल्लेखनीय है कि अगर भारत के एसएसएलवी रॉकेट की लागत 25 से 30 करोड़ रुपये आती है, तो यह पीएसएलवी के मुकाबले एक चौथाई की लागत से भी कम है।
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हिंदुस्तान ने भी लांचिग के इस तेजी से उभर रहे विश्व बाजार में अपनी दमदार उपस्थिति के लिए इस क्षेत्र में काफी रिफॉर्म किए हैं। ये इन सुधारों का ही नतीजा है कि आज हिंदुस्तान में अंतरिक्ष के क्षेत्र में करीब 150 स्टार्टअप काम कर रहे हैं और इनमें होने वाले निवेश में भी हर नये साल 3 गुना ज्यादा निवेश बढ़ रहा है। आज नासा और चीन के बाद दुनिया की तीसरी सबसे ताकतवर अगर कोई अंतरिक्ष एजेंसी है, तो वह भारत की इसरो ही है। बाजार के जानकारों का मानना है कि बहुत ही जल्द ही अंतरिक्ष से संबंधित ऐसी अनेक कारोबारी गतिविधियां उभरकर आने वाली हैं, जिनके बारे में पहले कभी कल्पना भी नहीं की गई,
सबसे बड़ी बात यह है कि एसएसएलवी को सिर्फ 72 घंटे में तैयार किया जा सकता है और इसे श्रीहरि कोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर के लांच पैड-1 से स्थायी रूप से लांच किया जाता है। अगर प्रतिस्पर्धा के स्तर पर एलन मस्क की कंपनी स्पेस एक्स की लांचिंग क्षमता को हैवी लोड यानी बड़े सैटेलाइट के स्तर पर देखें तो इस समय 5 लाख रुपये प्रति किलोग्राम की दर से दुनिया में सबसे सस्ती लांचिंग कर रहा है। लेकिन स्मॉल और नैनो सैटेलाइट लांच करने के मामले में एलन मस्क शायद ही इसरो के इस किफायती सैटेलाइट लांचर का मुकाबला कर सकें।
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इस समय दुनिया में हैवी सैटेलाइट से कई गुना ज्यादा बहुराष्ट्रीय कंपनियों, बड़े वैश्विक कारोबारी संगठनों आदि के निजी सैटेलाइट हैं जो कि स्मॉल और नैनो कैटेगरी में आते हैं। इनकी भरमार है और जिस तरह से संचार क्षेत्र की टेक्नोलॉजी ने सभी क्षेत्रों की टेक्नोलॉजी में क्रांतिकारी बदलाव कर दिया है, उसके कारण हजारों बहुराष्ट्रीय कंपनियां और कारोबारी संगठन अपना निजी सैटेलाइट अंतरिक्ष में लांच कराना चाहते हैं, ताकि वे अपने कारोबार को असीमित वैश्विक विस्तार दे सकें। यही वजह है कि जिस लांचिंग बाजार का अनुमान साल 2025 के लिए डेढ़ लाख करोड़ रुपये के आसपास आंका गया है, वह इससे कहीं ज्यादा बड़ा हो सकता है।
लेख विजय कपूर द्वारा