(डिजाइन फोटो)
व्यक्ति से परिवार, परिवार से समाज और समाज से देश बनता है इसलिए परिवार का विशेष महत्व है। प्रधानमंत्री मोदी ने परिवारवादी पार्टियों को हमेशा निशाने पर लिया। कांग्रेस, एनसीपी, नेशनल कांफ्रेस, सपा, राजद किसी को नहीं छोड़ा। उन्होंने घोषणा की थी कि मेरा कोई अपना परिवार नहीं है। सारे 140 करोड़ भारतवासी मेरा परिवार हैं। यह बात बीजेपी के नेता-कार्यकर्ताओं को इतनी जंची कि उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट में नाम के साथ ‘मोदी का परिवार’ लिखना शुरू कर दिया था। यह विपक्ष को करारा जवाब था।
लोकसभा चुनाव में बीजेपी अपने दम पर बहुमत हासिल करने में पिछड़ गई। अब की बार 400 पार का सपना टूट गया। 272 की मेजारिटी भी नहीं मिल पाई। पार्टी 241 सीटों पर सिमट गई। सरकार बनाने के लिए चंद्राबाबू नायडू और नीतीश की पार्टियों का सहयोग लेना पड़ा। इस तरह यह बीजेपी का नेतृत्व होने पर भी एनडीए की सरकार है। प्रधानमंत्री ने अपने समर्थकों और पार्टी नेताओं को अपने सोशल मीडिया हैंडल से ‘मोदी का परिवार’ का पुछल्ला हटा देने को कहा। चुनाव बीजेपी की गारंटी पर नहीं बल्कि मोदी की गारंटी पर लड़ा गया था। देशवासियों से उम्मीद थी कि वे आंख मूंदकर ब्रांड मोदी पर भरोसा जताएंगे और भक्तिभाव से वोट देंगे।
मध्यप्रदेश में तो यह पूरी तरह चल गया लेकिन यूपी के वोटर ने गारंटी पर विश्वास नहीं किया। राममंदिर का वादा पूरा करनेवाली बीजेपी से मतदाता सम्मोहित नहीं हुए। उनके लिए बेरोजगारी और महंगाई बड़े मुद्दे बन गए। घरों और छोटे मंदिरों को तोड़ने और लोगों को सड़कों पर ला देने से अयोध्या में बीजेपी हार गई। यदि यूपी, बिहार और महाराष्ट्रवासी मोदी की गारंटी पर अपनी आस्था जताते तो 2014 और 2019 के समान मोदी की मजबूत सरकार बनती। बीजेपी का 303 सीटों से उतरकर 241 सीटों पर आना अखरेगा ही। इसलिए अब न परिवार और न गारंटी का उपहार! एनडीए ने कर दिया जैसे-तैसे बेड़ा पार! लेख चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा