देवता ही नहीं, सरकार भी सो जाती है, चातुर्मास में गहरी नींद आती है (सौजन्यः सोशल मीडिया)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, आपको जानकारी होनी चाहिए कि आषाढ़ी या देवशयनी एकादशी से भगवान 4 माह के लिए सो गए। शास्त्रों के अनुसार जब देवता सो जाएं तो कोई मंगल कार्य नहीं किया जाता। इसका मतलब यह है कि शादी-ब्याह रुक जाएंगे। पंडित साफ मना कर देंगे कि अभी विवाह नहीं हो सकता। हमें समझ में नहीं आता कि ब्रह्मांड के नियंता ईश्वर कैसे सो सकते हैं?’ हमने कहा, बात समझने की कोशिश कीजिए। यह भगवान विष्णु की योगनिद्रा है। इस समय वे आंख मूंदकर ध्यानमग्न रहते हैं। घर में सर्प होने का अंदेशा होने पर लोगों की आंखों से नींद उड़ जाती है लेकिन भगवान शेषनाग की शय्या पर निश्चिंत सोए रहते हैं और लक्ष्मीजी उनके चरण दबाती हैं।
शेषनाग भगवान विष्णु के साथ पृथ्वी पर अवतार लेते हैं। कभी वे छोटे भाई लक्ष्मण के रूप में अवतरित होते हैं तो कभी बड़े भाई बलराम के रूप में।’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, जहां तक सोए रहने की बात है। विपक्ष मानता है कि सरकार सोई हुई है। गहरी नींद में गाफिल सरकार को महंगाई, भारी बेरोजगारी, हजारों किसानों की आत्महत्या नजर नहीं आती। सरकारी नौकरी कर रही और कार में घूमनेवाली महिलाओं को भी लाड़की बहीण योजना की रकम दी जा रही है क्योंकि सरकार की आंखें मुंदी हुई हैं। राशन का अनाज भी काले बाजार में जा रहा है। प्रतिष्ठा सूचक महामार्ग पर गहरे गड्ढे पड़ चुके हैं। जनता सरकार से कह सकती है- जागो सोनेवालो, सुनो मेरी कहानी।
‘ हमने कहा, ‘सत्ताधारियों का एक अलग सुविधाभोगी वर्ग रहता है। हमारे 86 प्रतिशत सांसद और बड़ी तादाद में मंत्री व विधायक करोड़पति हैं। महंगाई उनके पास फटक नहीं सकती इसलिए वे आम जनता की व्यथा क्या जानें!’ पड़ोसी ने कहा, ‘राजनीति लोगों को अंधा बनाती है। विदेशी भाषा अंग्रेजी की बजाय राष्ट्रभाषा हिंदी का विरोध कर नेतृत्व चमकाया जा रहा है। एक नेता आक्रामक शैली में भाषण देकर मजमा जुटा लेता है लेकिन उसकी पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाती। दूसरा नेता संगठन में कुशल है लेकिन भाषणबाजी में प्रभावशाली नहीं है। हिंदी की ताकत देखिए। हिंदी विरोध के मुद्दे ने बिछड़े हुए भाइयों को मिला दिया। उनका सम्मिलित उद्देश्य है मुंबई मनपा का चुनाव जीतना जिसका बजट देश के अनेक राज्यों से भी ज्यादा है। नेता जनसमस्याओं को देखकर कुंभकर्ण की नींद सो जाते हैं लेकिन जब चुनाव सामने आता है तो जग जाते हैं।’
चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा