सुप्रीम कोर्ट का उचित निर्णय (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) के उस आदेश पर रोक लगा दी जिसमें दिल्ली-एनसीआर में 10 वर्ष पुराने डीजल वाहन और 15 वर्ष पुरानी पेट्रोल से चलनेवाली गाड़ियों पर प्रतिबंध लगाया गया था।अब ऐसे वाहनों के मालिकों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी।हर 10-15 वर्ष पुराना वाहन खराब या प्रदूषण फैलानेवाला नहीं होता।सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के नेतृत्ववाली पीठ ने कहा कि लोग पहले 40-50 वर्ष तक एक ही कार का इस्तेमाल करते थे।आज भी पुरानी विंटेज कार मौजूद हैं, मानव हो या कार, उनकी फिटनेस का उम्र से संबंध नहीं है।अच्छी तरह से मेंटेन की गई कार कई दशकों तक चल सकती है।
दिल्ली सरकार की दलील थी कि एनजीटी का निर्देश किसी वैज्ञानिक अध्ययन अथवा पर्यावरण पर पड़नेवाले प्रभाव पर आधारित नहीं था।यदि प्रदूषण पर रोक लगाना है तो काफी कुछ किए जाने की आवश्यकता है।दिल्ली-एनसीआर से लेकर सारे देश में वायु प्रदूषण के स्तर की जांच करने का ढांचा अपर्याप्त है।प्रदूषण मापक केंद्रों पर केवल 15 से 20 प्रतिशत प्रदूषण फैलानेवाले वाहनों की पहचान की जाती है।नई कार के निर्माण से भी पर्यावरण प्रभावित होता है।नई कार खरीदने से भी प्रदूषण नहीं रुकता।इसलिए अच्छी देखभाल या सर्विसिंग की गई पुरानी गाड़ी को बदलना जरूरी नहीं है।यदि दिल्ली-एनसीआर से यह कहकर पुरानी गाडि़यां हटाई जा रही हैं कि इनका जीवनकाल खत्म हो चुका है तो उन्हें उन राज्यों व क्षेत्रों में भेजा जा सकता है जहां नियम सख्त नहीं है।
मुंबई, चेन्नई में समुद्री हवाओं के क्षार (नमक) की वजह से गाड़ियों को क्षति पहुंचती है लेकिन अन्य स्थानों पर ऐसी बात नहीं है।पुरानी गाड़ियों को स्क्रैप बनाने का ढांचा भी कहां है।यदि पुरानी कारों का कब्रस्तान बनाकर उन्हें बुलडोजर चलाकर तोड़ भी दिया जाए तो धातु के अलावा उनके प्लास्टिक, रबर व कांच का क्या होगा।उस मलबे का ढेर लग जाएगा।जापान में पुरानी कारों की रिसायकलिंग की जाती है लेकिन उनकी धातु की कतरनें काटने और एयरबैग नष्ट करने पर भी बड़ा हिस्सा बचा रह जाता है।भारत में ऐसी व्यवस्था कहां है? यहां के लोग यूरोप-अमेरिका जैसा कार का बहुत अधिक इस्तेमाल नहीं करते।घर में उपलब्ध बाइक या स्कूटर का ज्यादा उपयोग करते हैं।कुछ लोगों के लिए कार उनके स्टेटस का प्रतीक रहती है और कम इस्तेमाल की जाती है।
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अमेरिका के घरों में 20 से 25 साल पुरानी कार भी उपयोग में लाई जाती है।वहां हर 2 वर्ष बाद उसका फिटनेस सर्टिफिकेट लेना पड़ता है।इंजन, बाकी पार्ट तथा टायर सही हैं तो गाड़ी अच्छी तरह काम देती है।सिर्फ दिल्ली-एनसीआर में ही कार की उम्र से उसकी फिटनेस नापी जाती है।ऐसा अन्यत्र कहीं नहीं होता।लगता है कि नई गाड़ियों तथा ई-वाहनों की बिक्री को प्रोत्साहन देने के लिए 15 वर्ष पुरानी गाड़ी को कबाड़ घोषित करने का मनमाना निर्णय लिया गया था।सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अब पुरानी गाड़ियों के मालिकों को राहत मिली है।