सुप्रीम कोर्ट (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Aravalli Hills News: सुप्रीम कोर्ट ने अरावली हिल्स से जुड़े अहम मुद्दों पर स्वत: संज्ञान (Suo Motu) लिया है और इस मामले की सुनवाई सोमवार को करेगी। चीफ जस्टिस (CJI) सूर्यकांत की अगुवाई में तीन जजों की बेंच इस विवाद की सुनवाई करेगी, जिसमें सीजेआई के अलावा जस्टिस जे. के. माहेश्वरी और जस्टिस ए. जी. मसीह भी शामिल होंगे।
अरावली, दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है, जो करीब 700 किमी लंबी है। यह पर्वत श्रृंखला दिल्ली-एनसीआर को थार रेगिस्तान की धूल और मरुस्थलीकरण से बचाने के लिए एक प्राकृतिक ढाल का काम करती है। हाल ही में, सरकार द्वारा 100 मीटर ऊंचाई वाली नई परिभाषा पर विवाद उठने के बाद, अरावली को लेकर कई इलाकों में प्रदर्शन भी हुए। हालांकि, केंद्र सरकार का कहना है कि अरावली को किसी भी प्रकार का खतरा नहीं है।
कांग्रेस का आरोप है कि सरकार ने बड़े पैमाने पर खनन की अनुमति देने के लिए अरावली की परिभाषा में बदलाव किया है। कांग्रेस का कहना है कि इस बदलाव से अरावली के पर्यावरणीय संरक्षण पर गंभीर असर पड़ेगा। हालांकि, सरकार ने कांग्रेस के इस आरोप को पूरी तरह से नकार दिया है।
हंगामे के बाद, केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को आदेश दिए हैं कि वे अरावली क्षेत्र में नए खनन पट्टे देने पर पूरी तरह से रोक लगा दें। इन आदेशों का उद्देश्य अरावली की सुरक्षा करना और अनियमित खनन गतिविधियों को रोकना है। सरकार ने यह भी कहा कि वह अरावली के पूरे भूवैज्ञानिक क्षेत्र की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है, जो गुजरात से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र तक फैला हुआ है।
केंद्र सरकार ने भारतीय वानिकी शोध और शिक्षा संस्थान (ICFRE) को अरावली के अतिरिक्त क्षेत्रों की पहचान करने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही, अरावली में खनन को पूरी तरह से प्रतिबंधित किया जाएगा। केंद्र का कहना है कि पुरानी खदानों को भी कोर्ट के आदेशों का पालन करना होगा। सरकार का मुख्य उद्देश्य अरावली में अनियमित खनन गतिविधियों को रोकना है, क्योंकि इस क्षेत्र का अस्तित्व मरुस्थलीकरण को रोकने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
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विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि इस नियम के तहत अरावली का करीब 90% हिस्सा खतरे में पड़ सकता है। हालांकि, केंद्र सरकार ने नए खनन पट्टों पर रोक लगा दी है, लेकिन यह मामला अब देश की सर्वोच्च अदालत के पास है। सोमवार को होने वाली सुनवाई अरावली के अस्तित्व के लिए निर्णायक साबित हो सकती है। यह मामला पर्यावरणीय संरक्षण और देश के प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है, और सुप्रीम कोर्ट की आगामी सुनवाई इस पर महत्वपूर्ण दिशा तय कर सकती है।