नवभारत निशानेबाज (डिजाइन फोटो)
नवभारत डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, पहले महमूद, जॉनी वाकर, राजेंद्रनाथ, मुकरी, केश्टो मुखर्जी जैसे कॉमेडियन की फिल्में आया करती थीं जिनका मजा ही कुछ और था लेकिन अब कॉमेडियन बनना सजा हो गया है। पहले कामेडियन हंसते-हंसाते, नाचते-गाते थे या बैठे-बिठाए कॉमेडी करते थे लेकिन अब स्टैंड अप कॉमेडियन का जमाना आ गया है। हमें जॉनी लीवर, राजू श्रीवास्तव, सुनील पाल की कॉमेडी में भी आनंद आता था।’
हमने कहा, ‘अब कॉमेडी की वजह से राजनीति में ट्रेजेडी पैदा हो जाती है। किसी पर पैरोडी लिखकर पर्सनल अटैक किया जाए तो वह तिलमिलाएगा ही! दाढ़ी, चश्मा, रिक्शा जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर कुणाल कामरा ने जो कमेंट की, उससे महाराष्ट्र की राजनीति गरमा गई है।’
पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, कामरा ने अपना कर्म किया और कर्म का फल मिलता ही है। कुछ लोग कहते हैं कि इंसान को अपना कर्म यहीं भोगना पड़ता है। पैरोडी के रूप में कहा जा सकता है- सुन चंपा, सुन तारा, कोई जीता कोई हारा, शिंदे को निशाना बनाकर फंस गया कामरा। तू ही सागर है, तू ही किनारा, उद्धव के संग मिले सुर मेरा तुम्हारा!’
हमने कहा, ‘आपकी पैरोडी कुछ जमी नहीं! आपको कहना चाहिए-मुफ्त हुए बदनाम किसी पे हाय पैरोडी बना के, जीना हुआ हराम कबर से कामरा तक धमाके!’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, शायरी में कमर का जिक्र होता है। राज कपूर की फिल्म ‘बरसात’ का गीत था- पतली कमर है तिरछी नजर है, खिले फूल सी तेरी जवानी, कोई बता दे कहां कसर है।
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अब समय ऐसा आ गया है कि कमर की बजाय कामरा पर चर्चा होने लगी है। कामरा को अपने कर्म, सुकर्म, विकर्म पर विचार करना चाहिए। गीता के निष्काम कमयोग को पढ़ना चाहिए। पैरोडी लिखते समय ध्यान रखें कि इससे किसी को कष्ट न हो। कॉमेडी छोड़कर दिलीप कुमार की तरह ट्रेजेडी रोल करें। हमारी कामरा को सलाह है कि कॉमेडी धीरे से रचना मन में, नहीं तो कामरा फंसेगा तू अड़चन में!’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा