भूपति के सरेंडर से नक्सलियों को झटका (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की यह चेतावनी अपना असर दिखाने लगी है कि मार्च 2026 तक देश से नक्सलवाद का पूरी तरह उन्मूलन कर दिया जाएगा। नक्सल आंदोलन के बड़े नेता व केंद्रीय समिति सदस्य 70 वर्षीय मल्लोजुला वेणुगोपाल उर्फ भूपति उर्फ सोनू ने अपने 60 साथियों सहित गड़चिरोली पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। संगठन के शीर्ष नेतृत्व से भूपति के वैचारिक मतभेद बढ़ गए थे। उसने एक पत्र जारी कर कहा था कि नक्सलवाद का घटता जनाधार और साथियों की मुठभेड़ में मौत से यह बात साफ हो गई है कि अब सशस्त्र संघर्ष की बजाय बातचीत का रास्ता अपनाना ही उपयुक्त है।
भूपति के इस विचार का अन्य नक्सली नेताओं ने विरोध किया इसके बाद भूपति ने सरेंडर करने का निर्णय लिया। अब प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) का नेतृत्व थिप्पारी तिरूपति उर्फ देवूजी (62 वर्ष) तथा मडावी हिडमा उर्फ संतोष (51 वर्ष) संभालेंगे। ये दोनों पार्टी की मिलिट्री विंग के प्रमुख रहे हैं और हथियार डालने के खिलाफ हैं। दक्षिण बस्तर के कुछ नक्सली गुटों का उन्हें समर्थन प्राप्त है। भूपति के साथ आत्मसमर्पण करनेवालों में 2 जोनल कमेटी सदस्य, 10 डिवीजनल कमेटी सदस्य तथा विभिन्न दलम के सदस्य हैं। भूपति को जिंदा। या मुर्दा पकड़ने पर 10 करोड़ रुपए से अधिक का इनाम था। वह पार्टी का वैचारिक प्रमुख रहा है तथा संवाद-संचार विशेषज्ञ है। उसने छत्तीसगढ़ के जंगलों से दूर-दूर तक अपना संपर्क बना रखा था। भूपति तेलंगाना के पेडापल्ली का निवासी है। उसका भाई मल्लोजुला कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी 2011 में मारा जा चुका है।
इसके पूर्व भूपति की पत्नी ने 10 वरिष्ठ नक्सलियों के साथ गड़चिरोली में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के सम्मुख सरेंडर किया था तभी से भूपति के सरेंडर की भूमिका बनने लगी थी। छत्तीसगढ़ की मुठभेड़ में 2 सेंट्रल कमेटी के सदस्य मारे गए थे इसलिए उसने वहां सरेंडर नहीं किया। तेलंगाना में भी उसे सहयोग की उम्मीद नहीं थी और वहां पहुंचने के लिए उसे जंगल का बड़ा इलाका पार करते हुए हैदराबाद पहुंचना पड़ता इसलिए उसने आत्मसमर्पण के लिए महाराष्ट्र को चुना। यहां लागू सरेंडर व पुनर्वास की नीति की वजह से पहले भी नक्सली हथियार डाल चुके हैं। गड़चिरोली पुलिस व भामरागड़ के सी-60 कमांडो के प्रयासों की वजह से उसने महाराष्ट्र में आत्मसमर्पण किया।
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भूपति के पास जंगल व शहरों में माओवादी ठिकानों की व्यापक जानकारी है। ऐसा माना जाता है कि अब उत्तर बस्तर और अबूझमाड़ के नक्सली भी बड़ी तादाद में आत्मसमर्पण करेंगे। सशस्त्र बलों के अधिक शक्तिशाली व तालमेल के साथ एकजुट हो जाने से नक्सलियों पर दबाव बढ़ गया है। उनकी समझ में आ रहा है कि सशस्त्र संघर्ष में मारे जाने की बजाय आत्मसमर्पण व पुनर्वास उनके लिए बेहतर विकल्प है।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा