पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, हमें देश के लोकतंत्र की दशा और दिशा के बारे में बताइए. क्या आप मानते हैं कि इसकी हालत कुछ ऐसी है जैसे चुनौतियों के तूफान में भटका हुआ जहाज या ऐसा मरीज जिस पर दवाइयों का असर नहीं हो रहा है. मणिपुर के हालात हमारी चिंता बढ़ाने वाले हैं.’’
हमने कहा, ‘‘जब संकट आता है तो टल भी जाता है. हमारा लोकतंत्र आबादी के लिहाज से दुनिया में सबसे बड़ा है. जाति और भाषा की जितनी विविधता हमारे यहां है, उतनी कहीं नहीं है. कभी भी नकारात्मक सोच मत रखिए. आजादी के अमृत महोत्सव में हमारे देश और लोकतंत्र के बारे में पाजिटिव दृष्टिकोण रखिए. समुद्र की लहरों के समान लोकतंत्र की दशा भी ऊपर-नीचे होती रहती है. रही बात दिशा की, तो दिशाएं 10 है. उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम, ईशान, वायव्य, नैऋत्य, आग्नेय के अलावा ऊपर आकाश और नीचे पाताल की ओर. हमने चंद्रयान भेजा है इसका मतलब है कि हम ऊंचाई की ओर जा रहे हैं. बार-बार चुनाव होते रहने से हमारे लोकतंत्र में लगातार निखार आता रहता है. दिसंबर के पहले तक 5 राज्यों के चुनाव हो जाएंगे और अगले वर्ष अप्रैल-मई में लोकसभा चुनाव होगा.’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, हमें ऐसा लगता है देश में चुनावी हवा हमेशा चलती रहती है. कभी आम चुनाव में तो कभी उपचुनाव में. ऐसी हवा पंचायत, जिला परिषद, नगरपालिका से लेकर विधानसभा और लोकसभा चुनाव में भी जोर-शोर से चलती है. इस चुनावी हवा से लोकतंत्र का वायुमंडल बनता है.’’
हमने कहा, ‘‘चुनावी हवा नेताओं के लिए प्राणवायु का काम करती है. बशर्ते वह उसके पक्ष में चले. इस हवा में वादों की गुलाबी सुगंध समाई रहती है. इसमें सम्मोहन के इत्र की खुशबू होती है. जिस पार्टी की चुनावी हवा में घनत्व ज्यादा होता है वह वोटों की मानसूनी बारिश करा देती है. चुनावी हवा चाहे जिस पार्टी या गठबंधन की हो, उसमें हवा-हवाई आश्वासन शामिल होते हैं. वह जनमानस को छूते हुए ईवीएम में समा जाती है. नतीजे ही बताते हैं कि हवा किसके पक्ष में थी.’’