मुंबई में कबूतरों को दाना डालने पर रोक (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, कबूतर की कद्र देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं.जवाहरलाल नेहरू करते थे।चाहे 15 अगस्त का स्वाधीनता दिवस समारोह हो या गुटनिरपेक्ष देशों का सम्मेलन, वह शांति के प्रतीक कबूतर को अपने दोनों हाथों से खुले आसमान में उड़ने के लिए छोड़ा करते थे।खेद है कि अन्य किसी प्रधानमंत्री ने कबूतर उड़ाने की शानदार परंपरा नहीं निभाई.’ हमने कहा, ‘मुंबई महापालिका ने कबूतरों को दाना डालनेवालों को ऐसा करने से मना किया है।कबूतर की विष्ठा के संपर्क में आने से दमा, ब्रांकाइटिस जैसी बीमारियां फैलती हैं और फेफड़े का संक्रमण होता है।
इंसान का स्वास्थ्य कीमती है इसलिए कबूतर पालने और उन्हें दाना डालकर उनका झुंड जमा करने पर मनाही की गई है.’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, यह कदम जीवदया के खिलाफ है।मुंबई के गेटवे ऑफ इंडिया के पास बड़ी तादाद में कबूतर दाना चुगते हैं।लंदन के पिकैडली सर्कस और रोम के ट्रफलगार स्क्वेयर पर भी कबूतरों का झुंड मौजूद रहता है।कबूतर पालना नवाबी शौक रहा है।लखनऊ के नवाबों में कबूतर उड़ाने की शर्त लगा करती थी कि किसका कबूतर ज्यादा ऊंचाई पर जाएगा।प्रशिक्षित कबूतरों के जरिए प्राचीन डाकसेवा शुरू की गई थी।आपने गीत सुना होगा- कबूतर जा-जा-जा, पहले प्यार की पहली चिट्ठी साजन को दे आ! कबूतर के पैर में चिट्ठी बांध दी जाती थी।वह उसका जवाब भी इसी प्रकार वापस लेकर आता था।
ये भी पढ़ें– नवभारत विशेष के लेख पढ़ने के लिए क्लिक करें
माया गोविंद ने गीत लिखा था- चढ़ गया ऊपर रे, अटरिया पे लोटन कबूतर रे! पुराणों में राजा शिवि की कथा है कि उन्होंने इंद्र से कहा था कि कबूतर को मारने की बजाय उसके वजन का मेरा मांस ले लो।इसी तरह देवदत्त कबूतर को मारना चाहना था लेकिन उसके चचेरे भाई राजकुमार सिद्धार्थ ने उसको अपने पास शरण दी।मारनेवाले से बचाने वाला हमेशा बड़ा होता है.’ हमने कहा, ‘चिंता मत कीजिए।मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि कबूतरखानों को अचानक बंद करना उचित नहीं है।कबूतरों की जान बचाना, पर्यावरण की रक्षा करना और नागरिकों का स्वास्थ्य सुरक्षित रखना तीनों बातें महत्वपूर्ण हैं।जब तक कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं हो जाती तब तक बीएमसी कबूतरों को नियमित दाने की सप्लाई करना जारी रखे।’
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा