विधायकों-सांसदों को सम्मान देने का आदेश
नवभारत डिजिटल डेस्क: सम्मान अपने कृतित्व व जनसेवा की बुनियाद पर अपने आप ही मिलता है, किसी पर दबाव डालकर जबरन सम्मान पाया नहीं जाता। हरियाणा सरकार ने एक डॉक्टर पर इसलिए कार्रवाई की क्योंकि वह अस्पताल में विधायक आने पर अपना काम छोड़कर उसके सम्मान में खड़ा नहीं हुआ था। इस मामले में पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट ने सरकार को फटकार सुनाते हुए 50,000 रुपये जुर्माना किया। महाराष्ट्र सरकार ने भी हाल ही में आदेश जारी करते हुए कहा है कि यदि कोई सांसद या विधायक किसी सरकारी कार्यालय में जाता है तो अधिकारियों व कर्मचारियों को खड़े होकर उसका स्वागत करना चाहिए। इन 2 मामलों से सवाल उठता है कि लोकतंत्र में सम्मान और असम्मान का अर्थ क्या है? राज्य सरकार ने ऐसा आदेश क्यों जारी किया?
थी कि निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के साथ सरकारी कार्यालयों में सम्मानपूर्ण व्यवहार नहीं किया जाता? क्या ऐसे आदेश के जरिए सम्मान की मांग की जा सकती है? आम तौर पर विधायक व सांसद अपने किसी पार्टी कार्यकर्ता को छुड़ाने के लिए पुलिस थाने पहुंचते हैं। यदि कार्यकर्ता पर कोई हिंसक अपराध करने का आरोप है तो क्या उसे छोड़ा जा सकता है? एक्शन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) के अनुसार महाराष्ट्र के 187 में से 121 अर्थात 65 प्रतिशत विधायकों पर आपराधिक मामले बकाया हैं। 41 प्रतिशत पर हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण तथा महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले दर्ज हैं। स्पेशल एमपी-एमएलए कोर्ट में सैकड़ों मामले बकाया हैं।
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महाराष्ट्र के सांसदों-विधायकों पर ही 467 मामले बकाया है। इस पर भी डॉक्टरों, पुलिस अधिकारियों व सरकारी कर्मचारियों से कहा जाता है कि ऐसे तत्वों का सम्मान किया जाए। उल्लेखनीय है कि कल्याण के बीजेपी विधायक गणपत गायकवाड़ ने पुलिस थाने में गोली चलाई थी। नासिक में एक आईएएस अधिकारी पर हमला करने वाले विधायक को 3 माह कारावास की सजा सुनाई गई थी। एक अन्य मामले में उसी विधायक को सरकारी कर्मचारी पर हमला करने पर 1 वर्ष की सजा सुनाई गई थी। एक पुलिस अधिकारी की विधानभवन परिसर में विधायकों ने सामूहिक पिटाई की थी। मुंबई, पुणे, नागपुर, वाशिम, अकोला, संभाजीनगर व अमरावती में ऐसे मामले हो चुके हैं। कुछ जनप्रतिनिधि अपनी गाड़यों में सायरन का अवैध इस्तेमाल भी करते हैं। जिन जनप्रतिनिधियों की छवि बेदाग व कार्यकलाप अच्छे हैं उन्हें स्वयं ही हर जगह सम्मान मिलता है।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा