केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के मतानुसार प्रचलित सहकारिता कानून पुराना हो जाने से समय की जरूरतों के अनुरूप नहीं रह गया जिसमें आमूल बदलाव की आवश्यकता है। इस पर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इसमें बदलाव पर विचार करने के लिए समिति गठित करने की घोषणा कर दी। मुख्यमंत्री का यह एलान स्वागत योग्य है। राज्य में सहकार कानून 1960 में अस्तित्व में आया। 2011 में 97वें संविधान संशोधन के जरिए देश की सभी सहकारी संस्थाओं को विशेष संवैधानिक दर्जा दिया गया। 13 अगस्त 2013 से संविधान संशोधन के मुताबिक राज्य में सुधारित सहकार कानून लागू कर दिया गया।
विगत 12 वर्षों में सहकार क्षेत्र में अनेक परिवर्तन हुए हैं इसलिए सहकार कानून में भी बदलाव की आवश्यकता है। केंद्र सरकार ने 2021 में पृथक रूप से सहकार मंत्रालय निर्मित किया। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को इसका दायित्व सौंपा गया। शाह ने भी हाल ही में कहा कि सहकार संबंधी कानून कालबाह्य हो गया है जिसमें बदलाव किया जाना जरूरी है। देश की पंजीबद्ध 8,00,000 सहकारी संस्थाओं में से लगभग 2।25 लाख संस्थाएं और उनके 6 करोड़ सदस्य महाराष्ट्र में हैं। गृह निर्माण संस्था, शक्कर मिलें, सूत गिरणी, दूध संघ, जिला मध्यवर्ती बैंक, हैंडलूम, पावरलूम, मत्स्यपालन, पणन, उपसा जलसिंचाई जैसी सहकारी संस्थाओं का इसमें समावेश है। महाराष्ट्र की कुल सहकारी संस्थाओं में से 57,000 नफे में और 40,000 घाटे में हैं। इन संस्थाओं की चल पूंजी 5 लाख करोड़ के आसपास तथा जमापूंजी ढाई लाख करोड़ तक है।
सहकारी संस्थाओं पर सरकारी नियंत्रण ढीला हो जाने से पिछले समय कुछ संस्थाएं घोटाले के कारण बदनाम भी हुई थीं। राज्य सहकारी बैंक में घाटा आने पर उसका संचालक मंडल बर्खास्त किया गया था। प्रशासक के नियंत्रण में दिए जाने के बाद वह फायदे में आया। घाटे में चल रहे सहकारी शक्कर कारखाने निजी संस्था को दिए जाने पर मुनाफा देने लगे। बैंक का कर्ज हड़पने वाले सहकार सम्राटों की कमी नहीं है। इस समय सभी सहकारी संस्थाओं की विविधता देखते हुए गृहनिर्माण, कृषि, पणन जैसी सहकारी संस्थाओं के लिए अलग प्रावधान होने चाहिए। कुल सहकारी संस्थाओं में 57 प्रतिशत गृह निर्माण संस्थाएं हैं।
सहकारिता आंदोलन महाराष्ट्र के समान गुजरात, कर्नाटक व आंध्रप्रदेश में भी है। इसमें राजनीति पनपती है। सहकारी शक्कर कारखानों की बदौलत कितने ही नेता आगे आए हैं। पहले कांग्रेस और फिर एनसीपी सहकारी क्षेत्र की राजनीति में आगे रही। बीजेपी का अभी इस क्षेत्र में वर्चस्व नहीं बन पाया है। अजीत पवार को महायुति में लेकर बीजेपी सहकार क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने के प्रयास में है। कानून में उचित बदलाव किया जाए लेकिन इससे सहकारिता आंदोलन को क्षति नहीं पहुंचनी चाहिए।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा