छगन भुजबल और सुधीर मुनगंटीवार (डिजाइन फोटो)
नवभारत डेस्क: मंत्री न बनाए जाने की वजह से महायुति की तीनों पार्टियों के महत्वाकांक्षी नेता असंतुष्ट और अप्रसन्न हैं। जो पहले मंत्री रह चुके उन्हें लगता है कि उनके साथ अन्याय और उपेक्षा का बर्ताव किया गया है। चाहे केंद्र हो या राज्य, गिने चुने मंत्रियों को दोबारा यह पद दिया जाता है अन्यथा चेहरे प्राय: बदलते रहते हैं।
केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने हर कार्यकाल में कितने ही मंत्रियों को बदला और अलग चेहरों को मौका दिया। महाराष्ट्र में तो 3 पार्टियों की महायुति सरकार है इसलिए इनमें से हर पार्टी के नेता को कोटे के मुताबिक मंत्री पद के लिए नाम देने थे। यह मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है कि अपनी टीम में किसे शामिल करें।
असंतुष्ट नेताओं को भी समझना चाहिए कि नेता बड़ा नहीं होता, पार्टी बड़ी होती है। पार्टी अपनी जरूरतों को बेहतर समझती है। जो नेता पहले मंत्री रह चुके, उन्हें नए लोगों को मौका देने के बारे में उदार हृदय से सोचना चाहिए। पूर्व मंत्री व ओबीसी नेता छगन भुजबल ने तानाकशी करते हुए कहा कि पार्टी के लिए मैंने मराठा आंदोलनकारी मनोज जरांगे से बैर लिया। मुझे इसका यह इनाम मिला। मंत्री पद के लिए मेरा नाम चर्चा में था लेकिन पता नहीं बाद में क्यों हटा दिया गया। मेरी वरिष्ठता का ध्यान न रखते हुए जैसा व्यवहार किया गया उससे मैं नाराज हूं।
वरिष्ठ बीजेपी नेता सुधीर मुनगंटीवार को मंत्री न बनाए जाने को लेकर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि मुनगंटीवार सीनियर नेता हैं। हमारी उनसे चर्चा हुई है। हमें पार्टी और सरकार दोनों ही चलानी है।
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पार्टी के भीतर उनकी जिम्मेदारियां हैं। सुशासन के लिए उनके विचार मूल्यवान है। पार्टी उन्हें विशेष दायित्व देने की तैयारी में है। जहां तक अन्य नेताओं की बात है, शिंदे गुट के भंडारा से विधायक नरेश्र भोंडेकर ने मंत्री नहीं बनाए जाने से पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया।
निर्दलीय विधायक रवि राणा शीतसत्र छोड़कर अमरावती चले गए। इसी तरह तानाजी सावंत भी घर चले गए। सदाभाऊ खोत ने कहा कि हमारा ‘शिवार’ सूखा ही रह गया। शिंदे गुट में भी कलह कम नहीं है। मंत्री न बनाए जाने से पूर्व स्वास्थ्य मंत्री व विधायक तानाजी सावंत के साथ विधायक राजेंद्र गावित, विजय शिवतारे व प्रकाश सुर्वे भी नाराज हैं।
शिवतारे ने तो यह भी कह दिया कि ढाई साल के लिए मंत्री पद देते होंगे तो नहीं चाहिए। कार्यकर्ता किसी के गुलाम नहीं हैं। असंतुष्ट नेताओं की इस तरह की नाराजगी चार दिन रहेगी बाद में वे भी समझ जाएंगे कि पार्टी व सरकार की मजबूती के लिए सामंजस्य जरूरी है।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा