जापानी पीएम हुए शिकार (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, जापान के प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा अर्श से फर्श पर आ गए। ट्रंप के जालिम टैरिफ ने इशिबा की कुर्सी छीन ली। सचमुच यह टैरिफ बड़ा खतरनाक या टेरिफिक है। कितने ही देशों के लिए यह टेरर या हॉरर बन गया है।’ हमने कहा, ‘इशिबा का रुतबा तो पहले ही घट गया था। जब 2 माह पूर्व जुलाई में हुए संसदीय चुनाव में उनकी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी बुरी तरह हार गई थी। ऊपर से टैरिफ का असर ऐसा हुआ जैसे कड़वा करेला, वह भी नीम चढ़ा! इसलिए इशिबा की खटिया खड़ी, बिस्तरा गोल हो गया।’
पड़ोसी ने कहा, ‘जापानी प्रधानमंत्री इशिबा की पार्टी में भी विवाद खड़ा हो गया था जिसे दबाने के लिए उन्होंने इस्तीफा दे दिया। यह सच है कि 25 प्रतिशत टैरिफ की वजह से कीमतें काफी बढ़ गई थीं। जापान की इकोनॉमी में टैरिफ की सुनामी आई हुई है।’ हमने कहा, ‘यह संकट का दौर भी गुजर जाएगा। जापानी बहुत हिम्मती, मेहनती और राष्ट्रभक्त होते हैं। दूसरे विश्वयुद्ध में नागासाकी और हिरोशिमा पर अमेरिका ने एटम बम गिराया था। देश बुरी तरह बरबाद हो गया था लेकिन फिर जापानियों ने उसे समृद्ध बनाया। हमारी जापान से निकटता रही है।
आपने गीत सुना होगा- मेरा जूता है जापानी! फिल्म चलती का नाम गाड़ी का गाना था- जाते थे जापान पहुंच गए चीन, समझ गए ना! जॉय मुखर्जी व आशा पारेख की फिल्म का नाम था- लव इन टोक्यो! जापान के सहयोग से हमारे देश में बुलेट ट्रेन योजना चल रही है। जापानी कंपनियों सुजुकी, टोयोटा, निस्सान की गाड़ियां देश की सड़कों पर दौड़ रही हैं। जापान अंदर से मजबूत है। बंधी मुट्ठी लाख की!’
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पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, हमारी इकोनामी भी किसानों-मजदूरों की श्रमशक्ति और उद्योगपतियों के पुरुषार्थ से मजबूत है। हमारी जीडीपी विकास दर भी अच्छी रही है। टैरिफ से निपटने की ट्रिक निकाली जा सकती है। इशिबा की कुर्सी चली गई तो कोई और उनकी जगह पीएम बन जाएगा। इसलिए डोन्ट वरी, बी हैप्पी!’