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नवभारत डेस्क: महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव में जातिवाद और क्षेत्रीयता के मुद्दे हावी रहने के प्रबल आसार हैं। राज्य की आबादी में अनुसूचित जाति, ओबीसी, मराठा, धनगर और लिंगायत शामिल हैं। अनुसूचित जाति में नवबौद्ध 60 प्रतिशत, मातंग 19 प्रतिशत व चर्मकार 11 प्रतिशत हैं। परंपरागत रूप से कांग्रेस ने दलित, मुस्लिम और कुणबी का वोट बैंक अपने साथ रखा था।
इसके जवाब में बीजेपी ने चर्मकार, मातंग और खटिक को अपने साथ लिया। सुप्रीम कोर्ट के एससी व एसटी के उपवर्गीकरण के फैसले को देखते हुए बीजेपी अपने पक्ष में गैर बौद्ध एससी मतदाताओं को आकर्षित कर रही है। इस तरह वह महाविकास आघाड़ी को चुनौती दे रही है। बीजेपी ओबीसी समुदाय में से माली, धनगर और वंजारी के बीच प्रभाव बढ़ा रही है।
इस रणनीति से मराठवाड़ा, पश्चिम महाराष्ट्र और विदर्भ में बीजेपी का असर बढ़ा है। महाराष्ट्र में बहुत सी जातियां आरक्षण चाहती हैं। राज्य में 30 प्रतिशत आबादी मराठा कुणबी समाज की है जो पश्चिम महाराष्ट्र, मराठवाड़ा और विदर्भ में निवास करती है। कुणबी को ओबीसी के अंतर्गत मान्यता है। मराठा 16 प्रतिशत हैं जो आरक्षण मांग रहे हैं। इसे लेकर ओबीसी में खलबली है।
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ओबीसी में नई 15 जातियों का समावेश किया गया है। एनसीपी अजीत पवार गुट के नेता छगन भुजबल ने ओबीसी मतदाताओं के बीच महाविकास आघाड़ी को मजबूत रखा है। धनगर अपनी 9 प्रतिशत आबादी के साथ एसटी श्रेणी में समावेश चाहते हैं। इसे देखते हुए बीजेपी ने अहमदनगर का नाम बदलकर अहिल्याबाई होल्कर नगर रखा हैं।
अहिल्याबाई धनगर समाज की पूज्य रही हैं। लिंगायत समुदाय का कर्नाटक से लगे मराठवाडा क्षेत्र में प्रभाव है। वे शक्कर सहकारी कारखानों से जुड़े हुए हैं। महायुति सरकार ने ओबीसी के लिए क्रीमीलेयर 8 लाख रुपए से बढ़ाकर 15 लाख रुपए वार्षिक कर दी है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ओबीसी वोटों को संभालने में लगे हैं। 1995 के बाद से बीजेपी ने शहरी इलाकों में अपना प्रभाव मजबूत किया है।
महाराष्ट्र की राजनीति में मराठा वर्ग का प्रभाव काफी रहा है। एकनाथ शिंदे को महायुति ने मुख्यमंत्री बनाया। बीजेपी ने रावसाहब दानवे जैसे मराठा नेता को आगे बढ़ाया। इसके साथ ही बीजेपी ने ओबीसी नेता बावनकुले और धनगर समाज के नेता महादेव जानकर को समर्थन दिया। महाविकास आघाड़ी विदर्भ में नाना पटोले और विजय वडेट्टीवार पर निर्भर करती है। महाराष्ट्र के चुनाव पर जाति समीकरण हावी रहेगा। महाविकास आघाड़ी मराठी अस्मिता पर जोर दे रही है।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा