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विशेष: रिटायर हुआ आसमान का सूरमा मिग-21, 1963 में रूस से खरीदा था

MIG-21 Retirement: 1965 का युद्ध हो या 1971 की लड़ाई या फिर 1999 की कारगिल जंग। यही नहीं 2019 के सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट में भी आसमान के इस आकाश के शूरवीर मिग-21 की सेवाएं भुलाई नहीं जा सकतीं।

  • By दीपिका पाल
Updated On: Sep 26, 2025 | 01:18 PM

रिटायर हुआ आसमान का सूरमा मिग-21 ( सौ. डिजाइन फोटो)

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नवभारत डिजिटल डेस्क: देश का ऐतिहासिक लड़ाकू विमान मिग-21 रिटायर हो गया। 1965 का युद्ध हो या 1971 की लड़ाई या फिर 1999 की कारगिल जंग। यही नहीं 2019 के सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट में भी आसमान के इस आकाश के शूरवीर मिग-21 की सेवाएं भुलाई नहीं जा सकतीं। हवाई बेड़े में इसकी जगह लेने के लिए अन्य अत्यंत सक्षम और अत्याधुनिक विमान आएंगे। मगर देश के इस पहले सुपरसोनिक जेट की अतुलनीय ऐतिहासिक सेवाओं को भारतीय वायुसेना और देशवासी हमेशा याद रखेंगे। मिग-21 मात्र एक लड़ाकू विमान नहीं बल्कि लंबे समय तक भारत की वायु-शक्ति और संप्रभुता का प्रतीक रहा, जिसके साथ जुड़ी अमिट शौर्य गाथाएं भारतीय सैन्य इतिहास में दर्ज हैं। अब इनकी जगह कौन लेगा, स्वदेशी या विदेशी विमान ? क्या तेजस तैनाती के लिए तैयार है या इसमें अभी समय लगेगा? तेजस मिग के मुकाबले कितना सक्षम और कार्यकुशल है? मिग-21 को 2020 तक चरणबद्ध तरीके से हटाने का कार्यक्रम बनाया गया था, फिर इसे 2022 तक टाल दिया गया।

3 वर्ष के इस विलंब के पीछे कुछ वजहें हैं। भारतीय वायुसेना के पास निर्धारित संख्या में लड़ाकू स्क्वाड्रन पहले भी नहीं थे और आज भी नहीं हैं। फिलहाल राफेल जैसे विमानों की आपूर्ति से कुछ कमी दूर हुई है और स्वदेशी तेजस के आगमन से संभावना बढ़ी है। तीन साल पहले मिग-21 की जगह लेने वाले विमानों की आपूर्ति अत्यंत धीमी थी। स्वदेशी तेजस विमान का उत्पादन अभी पर्याप्त स्तर पर नहीं पहुंच पाया था। अमेरिकी इंजन का मसला हल न होने से इसकी अनिश्चितता चरम पर थी और राफेल विमानों की आपूर्ति भी पूरी नहीं हुई थी। सो, नए विमानों की कमी ने इस प्रक्रिया में विलंब कराया। उधर, इसी दौरान सुरक्षा माहौल भी बिगड़ा। चीन और पाकिस्तान दोनों एक से अधिक मोर्चों पर चुनौतियां बढ़ा रहे थे। ऐसे में अचानक मिग-21 को हटाना रणनीतिक जोखिम हो सकता था। इसके अलावा 2019 में बालाकोट और तत्पश्चात भारत-पाक तनाव ने मिग-21 की उपस्थिति को कुछ और समय तक बनाए रखने की मजबूरी पैदा की।

तकनीकी दृष्टि से बहुत पुराना मिग-21 का ढांचा और इंजन तकनीकी दृष्टि से बहुत पुराने पड़ चुके थे। 1963 में हमने मिग-21 को सोवियत संघ से खरीदा था। उस समय भारतीय वायुसेना के पास आधुनिक सुपरसोनिक लड़ाकू विमानों की भारी कमी थी। मिग-21 ने इस कमी को पूरा किया था। लेकिन 1960-70 के दशक की डिजाइन और तकनीक आज अप्रासंगिक है। इसकी गति और चपल कलाबाजी कभी क्रांतिकारी थी, परंतु आज के आधुनिक मल्टी-रोल विमानों के सामने यह सीमित हो गई है। आज की हाइपरसोनिक मिसाइलों, ड्रोन स्वार्म और रडार जामिंग जैसी चुनौतियों से निपटने में इसे सक्षम बनाना संभव नहीं था। इसलिए इसे रिटायर करना तकनीकी आवश्यकता और सामरिक मजबूरी दोनों थी।

पिछले दशकों में मिग-21 को ‘फ्लाइंग कॉफिन’ कहा गया, क्योंकि तकनीकी खामियों और पुरानी डिजाइन के कारण कई हादसे हुए। हमने कई प्रशिक्षित पायलट और विमान इसके चलते खोए। अब इसकी उड़ानें बंद होने से ऐसी दुर्घटनाओं तथा इस तरह का नुकसान थमेगा। वायुसेना में जहां आवश्यकता 42 से अधिक स्क्वाड्रन की है, वहीं वर्तमान में हमारे पास केवल लगभग 31-32 स्क्वाडून ही हैं। मिग-21 के हटने से यह संख्या और घटेगी, टेगी, वायुसेना की स्क्वाड्रन संख्या में तात्कालिक तौर पर प्रभावी कमी आएगी जिसकी भरपाई में समय लगेगा, क्योंकि नई पीढ़ी के विमानों की पर्याप्त उपलब्धता में विलंब है।

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जहां तक बात हल्के लड़ाकू स्वदेशी विमान तेजस की है, तो चौथी पीढ़ी का तेजस पूरी तरह डिजिटल फ्लाई-बाय-वायर सिस्टम और आधुनिक सेंसरों से लैस है। विविध प्रकार की मिसाइलें और बम ले जाने वाला तेजस मिग-21 के पुराने एनालॉग सिस्टम की तुलना में कहीं अधिक सुरक्षित और सक्षम है। तेजस के साथ दुर्घटनाओं की आशंका मिग-21 के मुकाबले बहुत कम है। तेजस यदि मिग-21 का स्थान लेगा तो यह भारतीय वायुसेना को तकनीकी दृष्टि से नए युग में ले जा सकता है।

लेख- संजय श्रीवास्तव के द्वारा

 

 

Indian air forces mig 21 aircraft retired purchased from russia in 1963

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Published On: Sep 26, 2025 | 01:18 PM

Topics:  

  • Indian Navy
  • Special Coverage
  • Tejas Fighter Jet

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