लाखों दिवंगतों को मुफ्त अनाज (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, मध्यप्रदेश में 12,00,000 स्वर्गवासी मुफ्त का अनाज खा रहे हैं।इससे हमें कहावत याद आने लगी है- अंधेर नगरी चौपट राजा! कुएं में भांग पड़ी है! जब लाखों लोग दिवंगत हो चुके तो उनके नाम पर फ्री राशन कैसे और क्यों जारी किया जा रहा है?’ हमने कहा, ‘ऐसा मानकर चलिए कि जो लोग चल बसे उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए मध्यप्रदेश सरकार पिंडदान कर रही है।यह शास्त्रों के अनुसार सत्कर्म और कर्तव्यपालन है।हाल ही में पितृपक्ष समाप्त हुआ है, यह मुफ्त का राशन दिवंगतों तक पहुंच गया होगा फिर वह चाहे जिस लोक में रह रहे होंगे।’
पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, आप भ्रष्टाचार का समर्थन मत कीजिए।मध्यप्रदेश में मुफ्त का राशन लेनेवाले 24लाख हितग्राही अपात्र पाए गए हैं।इनमें 1.57 लाख ऐसे भी लोग हैं जिनकी आय 6 लाख से अधिक है।18,000 लोग कॉरपोरेट मंत्रालय में रजिस्टर्ड कंपनी के डायरेक्टर हैं।इन्हें मुफ्त अनाज लेते शर्म नहीं आई।प्रशासन भी इतने वर्षों से धृतराष्ट्र बना रहा।इस तरह की धांधली निंदनीय है.’ हमने कहा, ‘अन्नदान की बड़ी महिमा है।इसे लेकर पौराणिक कथा सुनिए।महर्षि भृगु के पिता वरुण ब्रम्हनिष्ठ ऋषि थे।एक बार भृगु को जिज्ञासा हुई कि पिता से ब्रम्ह का बोध प्राप्त करना चाहिए।उन्होंने पिता से पूछा कि ब्रम्ह क्या है? वरुण ने भृगु के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा- अन्नं प्राणं चक्षु श्रोभं मनो वचमिति अर्थात अन्न, प्राण, तप, विज्ञान, आनंद, मन और वाणी ब्रम्ह हैं।अन्न से ही ये सब उत्पन्न होते हैं।हम अन्न खाकर जीवित रहते हैं।उससे ही प्राणों की रक्षा होती है इसलिए अन्न पूर्ण ब्रम्ह है।भूखे व्यक्ति का दिमाग, हाथ पैर कुछ नहीं चल सकते।वह निढाल हो जाता है।’
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पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, एक कथा हमने भी सुनी है कि दानवीर कर्ण जब यमलोक गए तो उनके सामने सोना-चांदी और अपार संपत्ति का ढेर रख दिया गया लेकिन खाने के लिए कुछ भी नहीं था।उनके पूछने पर कहा गया कि तुमने सब कुछ किया लेकिन अपने पूर्वजों की स्मृति में अन्नदान नहीं किया इसलिए तुम्हें 15 दिनों के लिए वापस पृथ्वी पर भेजा जाता है।जाकर पितरों के लिए अन्नदान करो और फिर वापस आकर स्वर्ग में सुख से रहो।कर्ण ने यही किया।तभी से पितृपक्ष की प्रथा शुरू हुई।क्या हम ऐसा मान लें कि मध्यप्रदेश सरकार ने भी लाखों स्वर्गवासियों के नाम पर मुफ्त अन्न देकर अपनी पूर्वज सरकारों को तृप्त किया होगा? आखिर किसी न किसी के पेट में अनाज गया होगा और उसे तृप्ति महसूस हुई होगी।’
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा