अंतरिक्ष में भारत का लहराएगा परचम (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: नासा और इसरो के बीच हुए समझौते के तहत भारत ने तकरीबन सात करोड़ रुपए में एक्सिओम स्पेस के चौथे मिशन के लिए एक सीट खरीदी है, जिस पर जल्द ही 85,33,82,00,000 रुपए का स्पेस सूट पहनकर शुभांशु शुक्ला कई दिनों के लिए अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन जाएंगे।सवाल यह है कि उनकी भूमिका क्या होगी? वे वहां ऐसा क्या करेंगे, जिससे भारत और बाकी दुनिया के भविष्य के अंतरिक्ष यात्रियों, अंतरिक्ष विज्ञान तथा इसरो को क्या लाभ होगा? 2018 में लालकिले से प्रधानमंत्री ने भरोसा दिलाया कि भारत के बेटे-बेटी बहुत जल्द अंतरिक्ष की यात्रा करेंगे।अब उनकी कथनी करनी बनेगी।
3 अप्रैल 1984 को रूस के सोयुज टी-11 अंतरिक्षयान से राकेश शर्मा अंतरिक्ष में पहुंचे व यान में ही सात दिन 21 घंटे से ज्यादा बिताकर लौटे थे।उसके 41 वर्ष बाद अब एक बार फिर एक भारतीय न केवल अंतरिक्ष में प्रवेश करेगा, पहली बार कोई देशवासी अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन का हिस्सा बन तमाम उल्लेखनीय अंतरिक्षीय कार्य करते हुए वहां दो हफ्ते बिताएगा।इस अंतरिक्ष यात्रा से हासिल विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र से महत्वपूर्ण और विस्तृत प्रतिफल, उसके बाजार और देश की साख पर पड़े प्रभाव, अनुभव दे की चर्चा तथा संभावित उपलब्धि का आकलन अत्यावश्यक है।
नासा इत्यादि की और इसरो के बीच हुए समझौते के तहत भारत ने प्राइवेट कंपनी एक्सिओम स्पेस के इस चौथे मिशन का हिस्सा बनने और ड्रैगन क्रू में सवार हो अंतरिक्ष में जाने हेतु तकरीबन सात करोड़ रुपए में एक सीट खरीदी है।
यह मिशन स्पेस एक्स फाल्कन 9 रॉकेट, ड्रैगन क्रू को ले रवाना होगा, तो मिशन पायलट होंगे शुभांशु शुक्ला।मिशन कमांडर होंगी अंतरिक्ष में 675 दिन बिताने वाली अमेरिकी इतिहास की सबसे अनुभवी अंतरिक्ष यात्री पैगी व्हिटसन।इसके अलावा दो मिशन विशेषज्ञ होंगे, हंगरी के टिबोर कापू और पोलैंड के स्लावोज उज्नान्स्की विस्नीव्स्की।ड्रैगन क्रू का लक्ष्य होगा अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पहुंचना।मिशन कमांडर पैगी जैव रसायन विशेषज्ञ हैं, तो स्लावोज विज्ञान और अंतरिक्ष अन्वेषण के वैज्ञानिक और इंजीनियर, जबकि टिबोर कापू शुभांशु की तरह अनुभवी फाइटर और टेस्ट पायलट।सब मिलकर दो हफ्तों के दौरान कई महत्वपूर्ण प्रयोग करेंगे।ये एक्सपेरिमेंट वैज्ञानिक दक्षता और विशेषज्ञता की मांग करते हैं।
मिशन के पूरे होने के बाद इस सवाल का बेहतर जवाब मिल सकेगा कि इतने खर्चीले अभियान की उपलब्धि क्या है? शुभांशु को इस अभियान में भेजने के पीछे इसरो तथा भारत सरकार का मूल उद्देश्य कितना सफल रहा? उनकी यह स्पेस ट्रिप भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगी और वैश्विक मंच पर भारत की वैज्ञानिक क्षमता की मजबूती दर्शाएगी।क्या उनका जाना मात्र सांकेतिक और गगनयान मिशन की ब्रांडिंग, स्पेस डिप्लोमेसी और अंतरिक्ष बाजार में पहुंच, प्रभाव, प्रचार का एक उपक्रम मात्र है? उनको इस मिशन पर भेजने को लेकर इसरो ने कौन से दूरदेशी उद्देश्य तय किए हैं? उनके क्रियाकलापों से भारत और बाकी दुनिया, अंतरिक्ष विज्ञान, आम जीवन तथा इसरो को क्या मिलेगा ?
शुभांशु के संचालन वाला दल अंतरिक्ष में कुछ ऐसे प्रयोगों का हिस्सा बनेगा, जो दूरगामी प्रभाव वाले होंगे।2008 में चंद्रयान-1 के माध्यम से यह साबित किया कि चंद्रमा की सतह पर पानी के अणु मौजूद हैं।इस बार इसरो ने माइक्रोग्रैविटी के साथ कई जैविक प्रयोगों में हिस्सा लेना तय किया है, ताकि माइक्रोग्रैविटी में जैविक प्रक्रियाओं को समझ सके।इसरो, नासा और रेडवायर के सहयोग से यहां ‘स्पेस माइक्रो एल्गी’ प्रोजेक्ट पर काम करेगा।ये शैवाल अपनी प्रोटीन प्रचुरता, लिपिड और बायोएक्टिव घटकों के चलते दीर्घावधि वाले मिशनों के लिए स्थाई भोजन बनेंगे।
अंतरिक्ष में फसल उगाने के इरादे से इसरो नासा और बायोसर्व स्पेस टेक्नोलॉजीज से मिलकर ‘अंतरिक्ष में सलाद बीज अंकुरण’ की कोशिश करेगा।प्रयोग सफल हुए तो भविष्य के अंतरिक्ष यात्रियों के लिए विश्वसनीय खाद्य स्रोत सुनिश्चित होंगे।लंबे अभियानों के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों के मांसपेशी क्षय और धरती पर इससे संबंधित बीमारी के इलाज में यह तजुर्बा मददगार होगा.
लेख- संजय श्रीवास्तव के द्वारा