भविष्य के योद्धा बनेंगे ड्रोन (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: छोटे आकार के ड्रोन तकनीक का कमाल दिखाते हुए कम खर्च में जंग की बाजी पलट देते हैं। आगामी सैन्य संघर्षों में इनका ही बोलबाला रहने वाला है। भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत बिना सीमा लांघे ड्रोन के जरिए पाकिस्तानी आतंकी ठिकानों पर बेहद सटीक हमले किए। थल और वायुसेना के सीमित इस्तेमाल के बावजूद ड्रोन दुश्मन की रक्षा प्रणालियों को निष्क्रय कर, उसे घुटने पर ला सकता है। ड्रोन उड़ने वाला रोबोट है, जिसे सॉफ्टवेयर प्रणाली के जरिए दूर बैठे उसकी उड़ान योजना, उड़ान के रास्ते, कारगुजारी को नियंत्रित किया जा सकता है।
कुछ मामलों में ये लड़ाकू विमानों के ऐसे विकल्प हैं, जो खतरनाक मिशनों में उनकी और मानव सैनिकों की आवश्यकता को कम करते हैं। सैन्य अभियानों की सुरक्षा बढ़ाते, लागत, रखरखाव खर्च बचाते हैं। माइक्रो, मिनी, पोर्टेबल, लॉइटरिंग एमुनिशन, अंडरवाटर, सर्विलांस, कॉम्बैट, स्वार्म और हाइब्रिड जैसे खास मिलिट्री ड्रोन वह सारी भूमिका निभा सकते हैं, जो जांबाज, कुशल, प्रशिक्षित सैनिक, अनुभवी पायलट सहित लड़ाकू विमान, पनडुब्बियां निभाते हैं
उच्च-रिजॉल्यूशन वाले कैमरे, थर्मल इमेजिंग और रडार से लैस ड्रोन खुफिया जानकारी जुटा सकते हैं, उपग्रहों से बेहतर गुणवत्ता वाले फोटो ले सकते हैं, दुश्मन के क्षेत्र या लक्ष्य का सजीव विवरण दे, मूवमेंट पर 360 डिग्री नजर रख सकते हैं। हेलीकॉप्टर जैसे डिजाइन वाले सिंगल-रोटर ड्रोन भारी रसद, गोला बारूद हथियार पहुंचा सकते हैं। हवाई जहाज जैसे डिजाइन वाले ड्रोन किसी भी मौसम में घंटों उड़ सकते हैं। स्वार्म तकनीक के तहत झुंड में हमला कर दुश्मन की वायुरक्षा प्रणाली को चकमा दे, उसे भ्रमित करने के अलावा उसके संचार को जाम कर सकते हैं। बे-आवाज, नीची उड़ान भर रडार की नजरों में आए बिना बम गिरा सकते हैं।
भविष्य में ऑटोनोमस ड्रोन पहले से बने एल्गोरिद्म के आधार पर आत्मनिर्भर होकर लक्ष्य खुद चुनेंगे, नष्ट करने के बाद ऑपरेटर को बताएंगे। भारत जीपीएस के बिना काम करने वाला एआई-सक्षम स्वदेशी ड्रोन बना रहा है। ये मानव रहित हैं। सो अभियान के दौरान प्रशिक्षित सैनिक, अधिकारी, पायलट को खोने का भय नहीं है। ये किसी फाइटर जेट के मुकाबले हजार गुना सस्ते हैं। यही वजह है कि संसार के तमाम छोटे-बड़े देश ड्रोन और उसकी तकनीक को खरीदने की होड़ में हैं।
भारत के पास 2500 से 3000 ड्रोन हैं। ये स्वदेशी तथा अमेरिका, इस्राइल जैसे देशों से आयातित हैं। नागास्त्र-1- इसे लोइटरिंग म्यूनिशन, स्काई स्ट्राइकर, कामिकेज या आत्मघाती ड्रोन भी कहते हैं। ये गश्त करते हुए रीयल टाइम में खुफिया जानकारी देते हैं, खुद निशाना साधते हैं और लक्ष्य को देखते ही अचानक खुद फैसला लेते हुए निशाने पर जाकर विस्फोट कर अपने साथ लक्ष्य उड़ा देते हैं। बैटरी से बे-आवाज और बहुत नीचे उड़ने के चलते दुश्मन की नजरों से ओझल रहते हैं। इसराइल का बना हार्पी ड्रोन 9 घंटे तक उड़कर, 32 किलो तक का पे-लोड ले, 500 किलोमीटर तक मार कर सकता है।
सटीक सर्जिकल स्ट्राइक की क्षमता युक्त इसराइल निर्मित हैरोप ड्रोन की रेंज 1000 किलोमीटर तक है और हवा में तकरीबन 9 घंटे तक उड़ान भरता रह सकता है। एंटी रडार टेक्नॉलॉजी युक्त हैरोप को 23 किलो तक के वॉरहेड के साथ युद्धपोत से भी इस्तेमाल किया जा सकता है। हिरोन मार्क-2-3000 किलोमीटर तक की रेंज का यह ड्रोन 24 घंटे तक हवा में रहने की क्षमता रखता है। अपने रडार आईआर कैमरा, ड्रोन लेजर मार्किंग के जरिए लक्ष्य का सटीक पता देता है।
ये जमीन से डेटालिंक के जरिए नियंत्रित होते हैं। एमक्यू रीपर अमेरिका निर्मित यह ड्रोन 1700 किलो तक का पे-लोड ले हवा में 27 घंटे रहकर 1850 किलोमीटर तक मार कर सकता है। स्काई-स्ट्राइकर भारत और इसराइल के साझा उपक्रम के तहत बंगलुरु में बना। 10 किलो तक वॉरहेड लेकर 100 किलोमीटर तक मार करने वाला यह तकरीबन बेआवाज ड्रोन कम ऊंचाई पर भी कारगर है। रुस्तम-2 200 किलोमीटर तक की रेंज का यह ड्रोन डीआरडीओ ने बनाया है। 350 किलो का पे-लोड वहन करने में समर्थ है।
लेख- संजय श्रीवास्तव के द्वारा