(डिजाइन फोटो)
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दावा किया है कि मार्च 2026 तक देश में नक्सलवाद का खात्मा हो जाएगा। जब 2014 में प्रधानमंत्री के रूप में मोदी ने पहली बार शपथ ली थी तब नक्सलवाद का जितना प्रभाव था, वह अब 10-20 प्रतिशत भी नहीं रह गया है। यदि किसी भी तरह के आतंकवाद का राजनीतिक लाभ न उठाते हुए उसे समाप्त करने की इच्छाशक्ति हो तो उसमें सफलता मिलती है।
विगत कुछ दिनों में छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के सफाये को सफलता मिली है। हाल ही अबूझमाड़ जंगल में हुई मुठभेड़ में 31 नक्सलवादी मारे गए। यह बड़ी मुठभेड़ थी जिसमें दलम के टॉप कमांडर कमलेश व नीति मारे गए। बस्तर संभाग के पुलिस महानिरीक्षक सुंदरराज पी। के अनुसार छत्तीसगढ़ में 202 नक्सली मारे गए, 812 को गिरफ्तार किया गया तथा 733 नक्सलियों ने स्वेच्छा से आत्मसमर्पण किया।
मुठभेड़ में मरनेवाले नक्सलवादियों की तुलना में शरण आनेवाले नक्सलियों की संख्या लगभग चौगुनी है। ऐसे लोग यदि हिंसा त्यागकर समाज की मुख्यधारा में लौटना चाहते हैं तो इसे हृदय परिवर्तन माना जा सकता है। नक्सलियों और उनके परिजनों का भविष्य अंधकारमय है। इसलिए जिन्होंने आत्मसमर्पण किया उन्होंने अपने परिवार की बेहतरी के लिए कदम उठाया है।
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केंद्रीय और राज्य सशस्त्र बलों के समन्वय की वजह से नक्सल विरोधी अभियान में सफलता मिल रही है। माओवादियों के प्रभाव क्षेत्रों में इस वर्ष अधिक सुरक्षा शिविर बनाए गए हैं। ड्रोन की निगरानी से भी मदद मिली है। पहले की तुलना में सुदूर क्षेत्रों तक बेहतर कनेक्टिविटी से भी फर्क पड़ा है। गरीबों व आदिवासियों को सरकारी मदद मिलने से भी नक्सली प्रभाव कम हुआ है।
आमतौर पर नक्सली एक राज्य में खूनखराबा करने के बाद जंगलों के रास्ते पड़ोसी राज्य में भाग जाते थे। अंतरराज्यीय सहयोग के कारण अब इस पर काफी रोक लगी है। यद्यपि नक्सली हिंसा में गिरावट आई है लेकिन इसे सरकार अपनी विजय न मान ले क्योंकि नक्सलवाद राख में छुपी चिनगारी के समान है।
आदिवासी क्षेत्रों के विकास पर ध्यान तथा युवाओं को नौकरी या रोजगार देकर ही इस पर काबू पाया जा सकता है। सुरक्षा उपायों के अलावा सामाजिक व आर्थिक नीतियों में भी समुचित बदलाव करना होगा। आदिवासियों के विकास की योजनाओं को सक्रियता से लागू करना, वहां के लोगों को स्थानीय विकास में सहभागी बनाना जरूरी है। इसके लिए उनका दिल जीतना होगा।
यह तथ्य भी अपनी जगह है कि नक्सलियों के दबाव से आदिवासियों को मुक्ति दिलानी होगी जो न्याय दिलाने के नाम पर उनका शोषण करते हैं। नक्सलियों को चीन, नेपाल, म्यांमार से होनेवाली शस्त्रपूर्ति का रास्ता भी बंद करना होगा।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा