अमर प्रीत सिंह (डिजाइन फोटो)
भारत आज भी अपनी 60 से 70 प्रतिशत रक्षा क्षेत्र की जरूरतों के लिए रूस पर निर्भर है। यह बात अलग है कि अमेरिका, फ्रांस, स्वीडन, इजराइल आदि देशों से भी रक्षा सामग्री का आयात किया जाता है लेकिन इससे रूस का प्रभाव कम नहीं हुआ है। देश को दुश्मन के हवाई हमले से सुरक्षा कवच के रूप में एस-400 मिसाइल सिस्टम की अत्यंत आवश्यकता है।
इसमें जमीन से हवा में मार करनेवाली मिसाइलें सक्रिय हो जाती हैं और शत्रु के विमान, हेलीकाप्टर, ड्रोन या मिसाइल को हवा में ही तबाह कर देती हैं। रूस ने अब तक भारत को ऐसे 3 एस-400 सिस्टम दिए हैं लेकिन 2 मिलना बाकी है। समझौते के मुताबिक सभी पांचों सिस्टम 2023 के अंत तक भारत को डिलीवर हो जाने चाहिए थे लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध लंबा चलने से इसमें बाधा आ गई।
अब एस-400 सिस्टम की बची हुई 2 यूनिट अगले वर्ष ही भारत को मिल पाएंगी। चीन और पाकिस्तान के खतरे को देखते हुए यह सभी सिस्टम भारत की वायु सुरक्षा के लिए न केवल जरूरी बल्कि अपरिहार्य हैं। यह संतोष की बात है कि भारत ने उसे अब तक मिली एस-400 मिसाइल सिस्टम की 3 इकाइयों को संवेदनशील क्षेत्रों में परिचालित व तैनात कर दिया है।
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इससे शत्रु के किसी भी मिसाइल हमले से देश को सुरक्षित रखा जाएगा। एस-400 सिस्टम इजराइल के आयरन डोम के समान शत्रु के मिसाइल या अन्य हवाई अटैक को नाकाम कर सकता है। इजराइल अपने दुश्मनों के हवाई हमलों और मिसाइल अटैक से आयरन डोम की वजह से सुरक्षित रहा। एस-400 शत्रु के मिसाइल या रॉकेट को बचकर जाने नहीं देता बल्कि पीछा कर मार गिराता है।
वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल एपी सिंह ने स्वीकार किया कि भारत की तुलना में चीन की सैन्य क्षमता काफी अधिक है लेकिन भारत की मिलिट्री ट्रेनिंग चीन से बेहतर है। भारतीय वायुसेना के पायलटों को विविध देशों के हर प्रकार के लड़ाकू विमान उड़ाने का अनुभव है। भारतीय वायुसेना ऐसे विभिन्न देशों के साथ युद्धाभ्यास करती है जिनका चीन के साथ संपर्क नहीं है।
इसलिए भारतीय पायलट ज्यादा कुशल और अनुभवी हैं। एयर चीफ ने आश्वस्त किया कि भारत के साथ इजराइल के समान तकनीक है जिससे वह दुश्मन के हवाई हमले को नाकाम कर सकता है। भारतीय वायुसेना अपनी वर्तमान 31 स्क्वाड्रन का विस्तार कर 42 स्क्वाड्रन बनाने जा रहा है जिसकी मंजूरी मिल चुकी है।
भारत के लड़ाकू विमानों की तादाद 30 से कम नहीं होने दी जाएगी। वायुसेना को 90 तेजस मार्क 1 ए अतिरिक्त विमान मिलने जा रहे हैं। तेजस मार्क-2 की भी 6-7 स्क्वाड्रन बनाई जाएंगी। मिग, सुखोई व जगुआर पहले से भारतीय वायुसेना में हैं।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा