पाकिस्तान से विदेशी कंपनियों का पलायन (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पाकिस्तान से विदेशी कंपनियां अपना बोरिया-बिस्तर समेटकर पलायन करने लगी हैं। उन्हें महसूस होता है कि पाकिस्तान की आंतरिक स्थितियां उनके व्यवसाय हितों के प्रतिकूल हो गई हैं। अंतरराष्ट्रीय उद्योग-व्यवसाय क्षेत्र ने समझ लिया है कि राजनीतिक अस्थिरता वाले इस कंगाल देश में उन्हें अपना उपक्रम संचालित करने के लिए कोई सहयोग व प्रोत्साहन मिलनेवाला नहीं है। व्यवसाय करने की सुविधा या ईज आफ डूइंग बिजनेस का वहां नामोनिशान नहीं है।
बलूचिस्तान और पीओके में बगावत और अशांत स्थितियों के रहते कब क्या हो जाएगा, कहा नहीं जा सकता। पिछले दिनों बलूचिस्तान में चीन के टेक्नीशियन मारे गए थे। बलूच अलगाववादी अपने यहां अमेरिकी कंपनियों को भी दुर्लभ खनिजों की माइनिंग नहीं करने देंगे। चीन भी बर्दाश्त नहीं करेगा कि उसकी सीमा के इतने निकट अमेरिकी चले आएं। वह पाकिस्तान पर दबाव डालेगा कि ऐसा कुछ भी न करे। हर बड़ी विदेशी फर्म जानती है कि पाकिस्तान में मैन्युफैक्चरिंग पूरी तरह ठप है। पैसों की तंगी से ग्राहकी में भी उत्साह नहीं है। सेवा क्षेत्र में भी प्रतिभावान लोग नहीं आ रहे हैं। जिनमें टैलेंट है, वह विदेश चले जाते हैं। तकनीकी शिक्षा के लिए उचित माहौल नहीं है। इसके अलावा अकाल व बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं की वजह से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का योगदान घटा है।
पाकिस्तान की सरकार देश का विकास करने की बजाय दमनचक्र चलाने में लगी है। पीओके में पाकिस्तानी फौजियों के भीषण अत्याचार व महिलाओं से दुष्कर्म का सिलसिला जारी है। इसके अलावा गिलगिट-बाल्टिस्तान व खैबर पख्तूनवा में भी असंतोष धधक रहा है। कानून का शासन नाम की कोई चीज नहीं है। इसलिए विदेशी निवेश व पूंजी पाकिस्तान में टिक पाना मुश्किल हो गया है।
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जब कोई बहुराष्ट्रीय कंपनी किसी देश में कारोबार शुरू करती है तो वह कमाई के प्रति गंभीर रहती है और जल्दी से जल्दी अपने निवेश की रकम वसूल करना चाहती है। जहां मुनाफा कमाना तो दूर, घाटा होता रहता है और सामान्य व्यवसाय की लागत तक निकल नहीं पाती, वहां कौन टिकना चाहेगा? पाकिस्तान की इस दयनीय दशा का खुद वहां के प्रमुख मीडिया ने वर्णन किया है। पाकिस्तानी अधिकारी विदेशी निवेश लाने के लिए खोखले वादे करते हैं लेकिन वहां के हालात देखकर निवेशक कदम पीछे हटा लेते हैं। सिर्फ सैनिक ताकत बढ़ाकर या खुद को एटमी ताकत वाला देश कहकर डींग हांकने से कोई देश संपन्न नहीं बन सकता। इन स्थितियों में पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था सिर्फ चीन और आईएमएफ के कर्ज व अमेरिका की खैरात पर ही चल रही है।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा