किसानों की कर्जमाफी पर महाराष्ट्र सरकार सख्त (सौ. सोशल मीडिया)
नवभारत डिजिटल डेस्क: चुनाव के समय किए गए वादों से मुकर जाना क्या जनता से विश्वासघात नहीं है? जब राजकोष में पैसा नहीं था तो लोगों को सब्जबाग क्यों दिखाए गए? महाराष्ट्र में सर्वाधिक किसान आत्महत्या हुई हैं. किसानों के वोट लेने के लिए आश्वासन दिया गया था कि सत्ता में आने पर महाराष्ट्र के सभी किसानों के कर्ज माफ कर देंगे लेकिन अब वित्तमंत्री अजीत पवार ने दो टूक शब्दों में कहा कि कर्जमाफी नहीं होगी और अगले वर्ष भी नहीं की जाएगी।
उन्होंने किसानों को तत्काल कर्ज की रकम भरने को कहा. जब पहले ही मालूम था कि कर्ज माफ करने लायक स्थिति नहीं है तो ऐसा वादा क्यों किया गया? खरीफ मौसम में 38,70,000 किसानों को 40,363 करोड़ रुपए और रबी मौसम में 17,742 करोड़ रुपए कर्ज वितरण किया गया. इस तरह कुल 58,105 रुपए कर्ज माफ करने के लिए सरकारी तिजोरी में धन होना चाहिए था लेकिन सरकार ने हाथ खड़े कर दिए. किसानों को भारी हताशा झेलनी पड़ी. उन्होंने इस उम्मीद में कर्ज की रकम अदा नहीं की थी कि वादा निभाते हुए सरकार कर्जमाफी कर देगी।
वित्तमंत्री के कर्जमाफी से इनकार के बाद अब किसानों को कर्ज देने वाले बैंक मुश्किल में आ गए हैं. अनेक जिला मध्यवर्ती बैंकों पर कार्रवाई करने की नौबत आ जाएगी. नागपुर जिला मध्यवर्ती बैंक पर भी प्रशासक नियुक्त कर दिया गया है. कर्जमाफी के लिए किसानों ने न तो कोई मोर्चा निकाला था, न आंदोलन किया था. मांग न करने पर भी उन्हें कर्जमाफी का आश्वासन दिया गया था. लिए हुए कर्ज की रकम खर्च हो जाने से अब वह इसे अचानक लौटाएंगे कैसे? यह किसानों के साथ क्रूरता नहीं तो और क्या है? वैसे भी किसान हर वर्ष कर्जबाजारी होकर खेत में हल चलाता है।
क्या महाराष्ट्र में लागत मूल्य को ध्यान में रखकर किसानों को सभी कृषि उपज के उचित भाव दिए जाते हैं? जब बाजार मूल्य कम मिलेगा तो किसान के पास कर्ज अदा करने के लिए पैसे आएंगे कहां से? कर्ज का बोझ और उसके तकाजे किसान की खुदकुशी की वजह बनते हैं. खजाना खाली होने की एक वजह यह भी रही कि कोई मांग न रहते हुए भी लाडली बहीण योजना शुरू की गई।
नवभारत विशेष से जुड़े सभी रोचक आर्टिकल्स पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
आर्थिक स्थिति न देखते हुए आवेदन करनेवाली प्रत्येक महिला को हर माह 1500 रुपए दिए गए. इस तरह 33,000 करोड़ रुपए बांटे गए. इतना ही नहीं, 1500 की रकम बढ़ाकर प्रतिमाह 2100 रुपए देने की बात भी कही गई. वर्तमान बजट में भी इसके लिए 36,000 करोड़ का प्रावधान किया गया है. अब सरकार की हालत यह है कि किसानों का कर्ज माफ करने में असमर्थ है. आर्थिक दृष्टि से विचार न करने से ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है।
लेख – चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा